Shabd Setu

Saturday, April 28, 2012

यह वैश्वीकरण किसका है ?



"यह वैश्वीकरण किसका है -- अमीरी का कि गरीबी का ? --- आनंद का कि दुखों का ?--- हिंसा का कि शान्ति का ?--- बुद्धि का कि मूर्खता का ? ---भले आदमी का कि गुंडों का ? ---देवताओं का कि दैत्यों का ? उत्पादक का कि उपभोक्ता का ?---- कहीं यह दलालों , आढतियों  का तो नहीं है ?"
---- राजीव चतुर्वेदी   








Posted by Unknown at 3:56 AM
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1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सब गड्मगड्ड है...

April 28, 2012 at 7:23 AM

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      • यहाँ शब्दों के झुरमुट से आवाज़ देता है कौन ?
      • आफताब की आफत आ गयी यार !!
      • अपने मुस्तकबिल के बावत सोचने दो अब मुझे
      • स्वतंत्रताके महास्वप्न का मध्यांतर है यह
      • वरना अफ़सोस के अफ़साने सुने हैं मैंने भी बहुत
      • दर्ज होना चाहती हैं खूबसूरत सी खरासें
      • यह वैश्वीकरण किसका है ?
      • आहत मन की आहट का आलेख ----यही कविता है
      • ऐ उड़ते हुए फरिश्तो,--- मेरी फेहरिस्त देख लो
      • भावना तेरी यहाँ पर भाप सी उड़ जायेगी
      • क़त्ल हो चुके तेरे कारीगरों ने भी मुहब्बत की थी
      • आओ कुछ अच्छा लिखें
      • हम गवाही देते हैं
      • दिमाग में इबारत और दिल में इमारत जितनी भी थीं ढह गयीं
      • बड़ी उदास है यह रात, सर्द हैं रिश्ते
      • प्यार की पैमाइश के कब पैमाने मिलेंगे ?
      • प्यार की परिभाषा पानी ने पूछी पत्थरों से
      • और हम अफ़सोस का तकिया लगा कर सो गए
      • चमगादड़ के शब्दकोष में सूरज अंधियारा करता है
      • संस्कृति के नाम पर विकृति का यशोगान ---मेरा भारत महान
      • रास्ते ले कर चल पड़े हैं मुझको रिश्तों से बहुत दूर,...
      • हिन्दी क्यों क्रमशः मर रही है ?
      • "पेड न्यूज"
      • योद्धा नक्षत्र के मोहताज़ नहीं होते
      • आओ फरिश्तों से कुछ बात करें बहुत उदास है ये रात
      • वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए
      • हर मेहनतकश को गधा कह रहे शातिर सुन
      • आहत है वह
      • हर हरामखोर के चेहरे पे नूर था
      • तह करके रख ले अपना आसमान ऊपर वाले
      • प्यार के छल की नमी क्यों नापते हो
      • ये कविता मेरी है गर वेदना तेरी हो तो बताना तू भी म...
      • सहमती शाम का सूरज संकोची सा नज़र आया
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