Sunday, October 18, 2015

एक अहसास चीख कर चुप होता है

" एक अहसास चीख कर चुप होता है
एक उपहास दिल के दालानों में पसर कर बैठा
मैं जानता हूँ
जिन्दगी की इस धूप में पेड़ की परछाईं सी जो छाया है
वह तुम्हारी हमशक्ल सी लगती है मुझे

शायद तुम्हीं हो
ओस से गिरते हमारे अहसास दिन में सूख जाते हैं
चांदनी क्यों चीखती थी रात को ?
सूरज सबेरे ही सवालों से घिरा यह पूछता है
सुना है वेदना अखबार में बिकने लगी है
मैं अकेला और तुम तनहा से तारों में कहीं अब दूर बैठे हो
हो सके तो दीवाली मनाने को मेरे पास चले आना
मैं तारों में खोज लेता हूँ तुम्हें पर बात बाकी है
इन हवाओं की गुजारिश प्यार करती सी गुजरती है
मैं अभी ठहरा नहीं हूँ
इस सफ़र में जब कभी ठहरूंगा तो बता दूंगा
प्यार, मौसम, यह हवाएं, चांदनी, वह धूप सूरज की,
पेड़ की छाया, काया हमारी और यह माया यहाँ रुकती नहीं है
रास्ते में तुम यहाँ अब कब मिलोगे ? -- प्रश्न यह पूछो नहीं
आभाष को अहसास कर लेना ."
----- राजीव चतुर्वेदी

Sunday, October 4, 2015

गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी


"मुसलमान गऊ मांस न खाएं पर गाय क्या खाये यह हिन्दू बताएं ?... क्या "गाय क्या खाये" इसकी कोई धार्मिक सामाजिक व्यवस्था है ?.... सुपोषित गायें गऊ वंश में अल्पसंख्यक हैं और कुपोषित बहुसंख्यक । जम्मू कश्मीर में या अन्य किसी मुस्लिम बहुल इलाके में अगर हिन्दूओं का कोई वर्ग सुअर का मांस खाये तो मुसलामानों को कैसा लगेगा ?...क्या इसे मुसलमान बर्दाश्त कर सकेंगे ?... तो फिर अमन की कोशिश में मुसलमान क्या मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि गऊ मांस न खाएं ? यह अमन और सहअस्तित्व की सार्थक पहल होगी । क्या मुसलमान यह करेंगे ?... अगर "हाँ" तो सहअस्तित्व की संभावना है और अगर "नहीं " तो सहअस्तित्व अकेले हिंदुओं की ही राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं । याद रहे; अघुलनशील अस्मिता राष्ट्र की एकता में बाधा है और गाय तथा सूअर की चर्बी पर 1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी ।"
---- राजीव चतुर्वेदी

Friday, September 25, 2015

दीनदयाल उपाध्याय और भाजपा की यात्रा कथा


(आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयन्ती है ...वह राजनीति के दार्शनिक संत थे ..."एकात्म मानववाद " के प्रणेता थे चुनावी नेता नहीं ...उनका जन्म मथुरा में फराह के पास नगला चंद्रभान में हुआ था . 1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में वह मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रेल के डिब्बे में मृत मिले थे ...विडंबना यह कि उनकी हत्या का मुकदमा जौनपुर के तत्कालीन जनसंघ के सांसद राजा यादवेंद्र दत्त मिश्रा पर चला था ....गाँधी की हत्या को मौन और मुखर समर्थन देने वाली शक्तियों ने ही दीनदयाल उपाध्याय की हत्या करवा दी थी )

" भाजपा की स्थापना 6 अप्रेल 1980 को एक राजनीतिक विवशता में हुयी थी . यह संक्रमणग्रस्त भारतीय जनसंघ का ही नया संस्करण था . भारतीय जनसंघ का चुनाव चिन्ह था दीपक और नारा था --
" हर हाथ को काम , हर खेत को पानी ,
घर घर में दीपक , जनसंघ की निशानी .
"

श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के तत्कालीन नेतृत्व में पार्टी के विचार विकसित हुए किन्तु वोट विकसित नहीं हुए ...बलराज मधोक ने प्रखर राष्ट्रवाद का परचम लहराया . उस दौर में लड़ाई कोंग्रेस को केन्द्रीय सत्ता से प्रतिस्थापित करने की नहीं थी . उस दौर में लड़ाई केवल अपने आपको प्रखर विपक्ष सिद्ध करने की थी और इस प्रतियोगिता में राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव के सोसलिस्ट अंतर्द्वंद्व संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी (संसोपा ) और प्रजा सोसलिस्ट पार्टी (प्रसोपा ) के रूप में थे वही अपने विरोध को विभाजित करने के लिए कोंग्रेस ने वामपंथियों को प्रायोजित कर दिया था (बिलकुल वैसे ही जैसे इस बार केजरीवाल की "आप" को . 1968 में कोंग्रेस के गर्भ से चौधरी चरण सिंह का उदय हुआ और राजनीती के लाल केशरिया झंडों में हरी झंडियाँ भी दिखने लगीं ...कोंग्रेस ने भी कुटिलता से स्वेत क्रान्ति का नारा दिया ...किन्तु विपक्ष विभाजित था. अब तक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की हत्या हो चुकी थी ... शेष बचे शीर्ष नेता बलराज मधोक को अटल बिहारी वाजपेयी हाशिये पर धकेल चुके थे (बिलकुल वैसे ही जैसे नरेंद्र मोदी ने अडवानी को धकेला ) अटल जी शीर्ष नेता थे और उनके लेफ्टीनेंट /सचिव थे लालकृष्ण अडवानी जो उस समय पार्टी मुखपत्र पांचजन्य / ओर्गनाइज़र के सम्पादक भी थे . साथ में राजस्थान से भैरों सिंह शेखावत और संघ परम्परा के नानाजी देशमुख भी बड़े सेनापतियों में थे .इनके नेतृत्व में करपात्री जी की अगुआई में "गो वध बंदी आन्दोलन " उभरा . आन्दोलन जितना सशक्त था उतनी ही सख्ती से इसे इंद्रा गाँधी ने कुचला भी ...दिल्ली में इसके प्रदर्शन में कुछ सौ लोग दिल्ली में पुलिस की गोली से मारे गए थे और इंद्रा गांधी की छवि हिन्दू विरोधी की हो गयी किन्तु 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद भाजपा के हाथ से उसका राष्ट्रवाद का मुद्दा छिन कर कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा जी के हाथ में चला गया था . इस लोकप्रियता की ऊंचाई पर पंहुच कर कोंग्रेस आत्ममुग्ध हो गयी और दोनों हाथ से लूट होने लगी ...भ्रष्टाचार के नए सोपान लिखे गए . इसके विरुद्ध भारतीय जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जबरदस्त काम किया ...उधर संसद में अटल बिहारी बाजपेयी विपक्ष की प्रखर आवाज़ बन कर उभरे तो जनसंघ के अनुसांगिक संगठन विद्यार्थी परिषद् ने पूरे देश के छात्रों में संगठन खड़े कर लिए अब संगठन के हिसाब से कोंग्रेस के बाद सबसे बड़ी ताकत जनसंघ हो चूका था ...1974 में गुजरात छात्र आन्दोलन से गुजरात की सरकार पलट गयी . यह आन्दोलन विद्यार्थी परिषद् का था जिसमें नरेंद्र मोदी आगे थे ...उधर बिहार में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी मूवमेंट कोंग्रेस की केन्द्रीय सरकार को उखड फेंकने के लिए चल पड़ा था . जेपी मूवमेंट में विद्यार्थी परिषद् की अग्रणी हिस्सेदारी थी जिसमें गोविन्दाचार्य प्रमुख थे और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली भी अग्रणी थे . 1975 में सोशलिस्ट नेता राजनारायण की चुनाव याचिका में इंद्रा गांधी हार गयीं किन्तु अपना पद बचाने के लिए उन्होंने 25 जून '75 को देश में आपातकाल लागू कर दिया ....सभी विपक्षी नेता जेल में थे जिनमें जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर्वाधिक नेता थे . 1977 में लोकसभा चुनाव में कोंग्रेस या यों कहें की इंद्रा गांधी के विरुद्ध अभूतपूर्व ध्रुवीकरण हुआ और तमाम विपक्षी दल अपना विलय कर जनता पार्टी बने . जनता पार्टी का सबसे बड़ा घटक भारतीय जनसंघ था . 1977 में जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली ...चंद्रशेखर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री . मोरारजी देसाई की इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे . किन्तु अंतरविरोधों के कारण यह सरकार डगमगा गयी और चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने ...प्रयोग असफल हो चुका था ...जनता पार्टी फिर आपने अपने धडों में बाँट गयी ...जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने पुनः नयी पार्टी का पंजीकरण कराया और अब 6 अप्रेल'1980 से इसका परिवर्तित नया नाम हुआ " भारतीय जनता पार्टी " और चुनाव चिन्ह मिला "कमल" ....और इसके बाद का घटना चक्र तात्कालिक इतिहास है और इतिहास साक्षी है कि भाजपा ने अभी तक किसी आन्दोलन को अंजाम तक नहीं पंहुचाया है ...सांकेतिक किया और सरकार बना कर चुप बैठ गए ...सांकेतिक कार सेवा ...सांकेतिक राष्ट्रवाद ....अभी तक तो यह राजनीती के अथक किन्तु कत्थक नृत्य ही कर रहे हैं ...अब अंजाम तक पंहुचना होगा . " ----- राजीव चतुर्वेदी

Thursday, September 24, 2015

अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू

"मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी ईश्वरीय कृति हैं ... बल्कि अवधारणा तो यही है कि मानव ईश्वरीय कृतियों में अंतिम कृति है ... यह सनातन अवधारणा है , इस्लाम की भी है, ईसाइयों की भी ,बौद्धों की भी ,यहूदियों की भी ,पारसीयों की भी (मार्क्सवादी मजहब को मानने वाले ही इस अवधारणा से असहमत हैं ) ... फिर ईश्वर की एक कृति को दूसरी कृति नष्ट करे यह अधिकार कहाँ से मिल गया ? ...ईश्वर /ईसा /अल्लाह तो नहीं दे सकते ? ...भला कौन पिता अपनी कमजोर संतति को मारने का हक़ अपनी ताकतवर संतति को देगा ? ... निश्चय ही पशु बलि / कुर्बानी ताकतवर संतति मानव के द्वारा अपने अधिकार के विस्तार ही नहीं पशुओं के प्रकृति पर हक़ पर अतिक्रमण की कहानी है ... पहले राजा नरबलि देते थे फिर हम कुछ और सभ्य हुए तो कानूनन इस पर रोक लगी ...आश्चर्य इस बात पर है कि ईश्वर /अल्लाह /ईसा केवल शाकाहारी सीधे अहिंसक जानवरों की बलि पर ही खुश होते हैं ? ... अरे भाई अपने पालतू या सड़क के फालतू कुत्ते की बलि या कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ...शेर से ले कर सांप तक किसी हिंसक प्राणी की कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ... शाकाहारी प्राणीयों का गोस्त ही क्यों खाते हो ?
मानव ने मजहब बनाए और अलग अलग भयावह रूपों में यमराज की कल्पना कर ली पर पशुओं की भी तो सुनो ...नेपाल के काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के इलाके के भैंसे / बकरे बताते होंगे यमराज त्रिपुण्ड लगाता है ...कामाख्या मंदिर- गौहाटी के इलाके के बकरे /भैंसे बताते होंगे कि यमदूत तिलक लगाता है और इसी तरह बकरीद पर गाय /भैंस /ऊँट /भेड़ /बकरे आपस में बताते होंगे कि यमराज गोलटोपी पहन कर आता है और मजहब से मुसलमान होता है ...कुल मिला कर यमदूत की शक्ल में साम्प्रदायिक आरक्षण है . बहरहाल जितना गोश्त बकरीद पर खाया जाता है उतना गोश्त होली पर भी खाया जाता है .
क़त्ल तो क़त्ल है फिर चाहे मानव का हो या पशु का ...क़त्ल को हर हाल में केवल आत्म रक्षा के लिए ही जायज ठहराया जा सकता है ...मानव पर संसद थी ..विधान सभा थी ...एक जुट करती भाषा थी तो पहले अपनी बलि प्रतिबंधित करने के क़ानून बनाए फिर ताकतवर मानव इकाइयों ने कमजोर मानव इकाइयों का शोषण किया प्रकृति के शोषण किया फिर अपना पोषण करने वाले जल जंगल जमीन का शोषण किया ...फिर अब बारी शाकाहारी प्राणियों की थी तो उनकी बलि /कुर्बानी होने लगी .
ईश्वर /अल्लाह /ईसा अगर है तो कभी अपनी ही निर्दोष कृति के क़त्ल पर खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा निर्दोषों के क़त्ल पर खुश होता है तो मैं उसकी निंदा करता हूँ ...मेरा ईश्वर कातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकता ...मेरा ईश्वर क़त्ल से खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू ." ----- राजीव चतुर्वेदी

Saturday, September 5, 2015

क्या तुम कृष्ण को जानते हो ?


----- // 1- कृष्ण क्या है ? // ---
"कृष्ण उस प्यार की समग्र परिभाषा है जिसमें मोह भी शामिल है ...नेह भी शामिल है ,स्नेह भी शामिल है और देह भी शामिल है ...कृष्ण का अर्थ है कर्षण यानी खीचना यानी आकर्षण और मोह तथा सम्मोहन का मोहन भी तो कृष्ण है ...वह प्रवृति से प्यार करता है ...वह प्राकृत से प्यार करता है ...गाय से ..पहाड़ से ..मोर से ...नदियों के छोर से प्यार करता है ...वह भौतिक चीजो से प्यार नहीं करता ...वह जननी (देवकी ) को छोड़ता है ...जमीन छोड़ता है ...जरूरत छोड़ता है ...जागीर छोड़ता है ...जिन्दगी छोड़ता है ...पर भावना के पटल पर उसकी अटलता देखिये --- वह माँ यशोदा को नहीं छोड़ता ...देवकी को विपत्ति में नहीं छोड़ता ...सुदामा को गरीबी में नहीं छोड़ता ...युद्ध में अर्जुन को नहीं छोड़ता ...वह शर्तों के परे सत्य के साथ खडा हो जाता है टूटे रथ का पहिया उठाये आख़िरी और पहले हथियार की तरह ...उसके प्यार में मोह है ,स्नेह है,संकल्प है, साधना है, आराधना है, उपासना है पर वासना नहीं है . वह अपनी प्रेमिका को आराध्य मानता है और इसी लिए "राध्य" (अपभ्रंश में हम राधा कहते हैं ) कह कर पुकारता है ...उसके प्यार में सत्य है सत्यभामा का ...उसके प्यार में संगीत है ...उसके प्यार में प्रीति है ...उसके प्यार में देह दहलीज पर टिकी हुई वासना नहीं है ...प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति इसी लिए वासना वैश्यावृत्ति है . जो इस बात को समझते हैं उनके लिए वेलेंटाइन डे के क्या माने ? अपनी माँ से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपने मित्र से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी बहन से प्यार करो कृष्ण की तरह ...अपनी प्रेमिका से प्यार करो कृष्ण की तरह ... .प्यार उपासना है वासना नहीं ...उपासना प्रेम की आध्यात्मिक अनुभूति है और वासना देह की भौतिक अनुभूति ." ----राजीव चतुर्वेदी

----- // 2- कृष्ण और पर्यावरण // ---
" आज कृष्ण का प्रतिपादित पर्यावरण दिवस है ...दीपावली के बाद हम गोवर्धन पूजा भी करते हैं . गो (गाय ) + वर्धन (बढाना ) यानी गऊ वंश को बढाने का संकल्प दिवस . ...आज गो वंश को बढ़ाना तो दूर जगह जगह आधुनिक कट्टीखाने खुल गए हैं ...दूध डेरी के उत्पादकों से अधिक कमाई चमड़े के व्यवसाई और कसाई कर रहे हैं ...आज पहाड़ों , जंगल और जंगल पर आधारित मानव सभ्यता के मंगल का दिवस है ...आज के दिन ही पर्यावरण की ...वन सम्पदा की ...नदियों की , जंगल की , पशु पक्षियों की रक्षा का संकल्प कभी द्वापर में जननायक कृष्ण ने लिया था . ...जननायक का संकल्प नालायक के हाथ में जब पड़ता है तो पर्यावरण का वही हाल होता है जो आज है . आज हम पहाड़ों की , प्रकृति की , सम्पूर्ण पर्यावरण की रक्षा और उसके संवर्धन का संकल्प लेते हैं ...औषधीय उत्पाद को घर पर ला कर उनके व्यंजन बनाते हैं ...गाय के वंश को बढाने का संकल्प लेते हैं ." ----- राजीव चतुर्वेदी

----- // 3- कृष्ण और महिला मुक्ति // ---
" !! यह काम न तो कोई NGO कर सका है ...न एमनेस्टी इंटरनेश्नल ...न राष्ट्र ...न संयुक्त राष्ट्र ...न कोई ईसाई मिशनरी ...न प्रशासन की कमिश्नरी ...और जन्नत में हूर के लिए धरती पर लंगूर बने लोगों के मजहब से तो उम्मीद ही क्या की जाए ? भगवान् कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके शोषण से 16000 महिलाओं को मुक्त कराया था। नरकासुर का राज्य वर्तमान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (असाम /सिक्किम /मेघालय मणिपुर ) में था। यह हमला करके महिलाओं को उठा लेजाता था। कृष्ण महिला समानता और स्वतंत्रता के पक्षधर थे। जब उनको नरकासुर की करतूतों का पता चला तो उन्होंने लगभग कमांडो की शैली में कार्यवाही करते हुए नरकासुर का वध किया था। किन्तु न भूलें अभी नरकासुर के और भी छोटे, बड़े, मझोले संस्करण समाज में मौजूद हैं। अभी भी नरकासुर के क्षेत्र से विश्व की सब से ज्यादा बाल वेश्याएं आ रही हैं। अभी भी वहां देह व्यापार के सबसे बड़े अड्डे हैं। अभी भी भारतीय समाज में दहेज़खोर हैं ...अभी भी महिलाओं को मुकम्मल मुक्ति नहीं मिली है। क्या आज के दिन हम भगवान् कृष्ण से कोइ प्रेरणा लेंगे ? नरकासुर केनाम से ही इस दिन को नरक चतुर्दसी कहते हैं। नारी शोषण की मानसिकता का आज वध हुआ था अतः आज हम मनाते हैं महिला मुक्ति दिवस !! "---राजीव चतुर्वेदी

----- // 4- कृष्ण -- भूगोल और खगोल // ---
"कृष्ण की महारास लीला ...शरद ऋतु का प्रारम्भ होते ही प्रकृति परमेश्वर के साथ नृत्य कर उठाती है एक निर्धारित लय और ताल से ...त्रेता यानी राम के युग की मर्यादा रीति और परम्पराओं में द्वापर में परिमार्जन होता है ...स्त्री उपेक्षा से बाहर निकलती है ...द्वापर में कृष्ण सामाजिक क्रान्ति करते हैं फलस्वरूप स्त्री -पुरुष के समान्तर कंधे से कन्धा मिला कर खड़ी हो जाती है ...स्त्री पुरुष के बीच शोषण के नहीं आकर्षण के रिश्ते शुरू होते है ..."कृष" का अर्थ है खींचना कर्षण का आकर्षणजनित अपनी और खिंचाव ...द्वापर में जिस नायक पर सामाजिक शक्तियों का ध्रुवीकरण होता है ...जो व्यक्ति कभी सयास और कभी अनायास स्त्री और पुरुषों को अपनी और खींचता है ...सामाजिक शक्तियों का कर्षण करता है कृष्ण कहलाता है ....शरद पूर्णिमा पर खगोल के नक्षत्र नाच उठते हैं ...राशियाँ नाच उठती है और राशियों के इस लयात्मक परिवर्तन को ...राशियों के इस नृत्य को "रास " कहते हैं ...खगोल में राशियों का नृत्य अनायास यानी "रास" और भूगोल में इन राशियों के प्रभाव से प्रकृति का आकर्षण और परमेश्वर का अतिक्रमण वह संकर संक्रमण है जो सृजन करता है ...दुर्गाष्टमी के विसृजन के बाद पुनः नवनिर्माण नव सृजन का संयोग . कृष्ण स्त्री -पुरुष संबंधों को शोषणविहीन सहज सामान और भोग के स्तर पर भी सम यानी सम्भोग (सम +भोग ) मानते थे ...जब खगोल में राशियाँ नृत्य करती हैं और रास होता है ...जब भूगोल में प्रकृति परमेश्वर से मिलने को उद्यत होती है ...जब फूल खिल उठते हैं ...जब तितलियाँ नज़र आने लगती हैं ...जब रात से सुबह तक समीर शरीर को छू कर सिहरन पैदा करता है ...जब युवाओं की तरुणाई अंगड़ाई लेती है तब कृष्ण का समाज भी आह्लाद में नृत्य कर उठता है ...खगोल में राशियों के रास यानी कक्षा में नृत्य के साथ भूगोल भी नृत्य करता है और उस भूगोल की त्वरा को आत्मसात करने की आकांक्षा लिए समाज भी नृत्य करता है ...खगोल में राशियों के नृत्य को रास कहते हैं ...राशियाँ नृत्य करती हैं धरती नृत्य करती है ...अपने अक्ष पर घूमती भी है ...चंद्रमा , शुक्र ,मंगल , बुध शनि ,बृहस्पति आदि राशियाँ घूमती हैं , नृत्य करती हैं ...धरती घूमती है और नाचती भी ...खगोल और भूगोल नृत्य करता है ...और उससे प्रभावित प्रकृति भी ...खगोल ,भूगोल और भूगोल पर प्रकृति नृत्य करती है राशियों की त्वरा (फ्रिक्येंसी ) पर नृत यानी रास करती है ...सभी राशियों के अपने अपने ध्रुव हैं ...ध्रुवीकरण हैं ...भौगोलिक ही नहीं सामाजिक ध्रुवीकरण भी हैं ...द्वापर में यह ध्रुवीकरण जिस नायक पर होता है उसे कृष्ण कहते हैं ...और खगोल से भूगोल तक राशियों से प्रभावित लोग कृष्ण को केंद्र मान कर रास करते हैं ." ------- राजीव चतुर्वेदी

----- // 5 - कृष्ण और गीता // ---
----- // श्री मद्-भगवत गीता के बारे में सत्य और तथ्य // ----

"प्रश्न - किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।


प्रश्न --कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।


प्रश्न --भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।


प्रश्न --कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी


प्रश्न --कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।


प्रश्न --कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में


प्रश्न --क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।


प्रश्न -- कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय .


प्रश्न -- कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक


प्रश्न --गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।


प्रश्न --गीता को अर्जुन के अलावा और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने .


प्रश्न --अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को.


प्रश्न -- गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में .


प्रश्न --गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति- पर्व का एक हिस्सा है।


प्रश्न --गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद .


प्रश्न -- गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, धृतराष्ट्र ने- 1 तथा संजय ने- 40.
" ------ राजीव चतुर्वेदी

Friday, September 4, 2015

मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं धनानंद, मैं शिक्षक हूँ



" मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं धनानंद,
मैं शिक्षक हूँ,
यदि मेरी शिक्षा में सामर्थ्य है तो अपना पोषण करने वाले सम्राटों का निर्माण मैं स्वयं कर लूँगा ."

-चाणक्य ( विश्व का सर्वोच्च शिक्षक)

और अबोधों की ये भीड़ ...



"सौन्दर्य बोध के सहमे सवाल
और अबोधों की ये भीड़
तुम बताओ क्या कहूं ? ... किस से कहूँ सपने अधूरे से ?


सुना है शब्द रहते थे यहाँ पर
और उन शब्दों में पूरा एक शहर बसता था
दिन में कोलाहल सा था
कहकशाँ था शाम को
चांदनी चर्चित सी थी
मेरे हाथों का तकिया सा लगा कर रात जगती थी
सुबह सकपकाई सी सूरज की उंगली को थामे छोटे बच्चे सी
मेरे आँगन में आती थी
नादानियां शब्दों को ओढ़े फक्र करती थीं

वही अब शब्द सारे हैं
जो रहस्यों को गुनगुनाते सूनी इमारत से खामोश बैठे हैं
जिन शब्दों में सारा संसार रहता था वहीं अब सन्नाटा सिमटा है
अब शब्द बीरान से हैं ...खोखले खामोश से हैं
खोखले शब्द खनकते हैं बहुत


सौन्दर्य बोध के सहमे सवाल
और अबोधों की ये भीड़
तुम बताओ क्या कहूं ? ... किस से कहूँ सपने अधूरे से ?"
----- राजीव चतुर्वेदी