Monday, June 9, 2014

मैं झरने का बहता पानी तुम बोतल के शुद्ध नीर हो

"मैं झरने का बहता पानी तुम बोतल के शुद्ध नीर हो ,
मैं ममता का शुद्ध दूध हूँ और तुम बाजारू से पनीर हो
मैं जंगल का हूँ पेड़ जूझता अड़ा खड़ा झाझावातों से
तुम बंगले के गमले में उगे हुए से इक पौधे हो
मैंने सीखे शब्द आचरण की अंगड़ाई में
तुमने था कुछ रटा व्याकरण की पढाई में
मैं इस मिट्टी का बेटा तुम बोर्नविटा के बेटे हो
मैं सियाचिन पर खड़ा हुआ हूँ तुम एसी में लेटे हो
राष्ट्रप्रेम मेरा लोकल है तुम पर ग्ल
ोबल सा गुमान है
तुम को टाई पर घमंड है
बहनों ने जो तिलक लगाया वह ही मेरा स्वभिमान है
मैं भारत की इबारत का हर्फ़ बना तो गर्व करूंगा
तुम एक इंडिया में ओडोमास लगा कर सोना
सेंसेक्स और फेयरसेक्स से रिलेक्स जब हो जाना तो
यह बतलाना
भारत क्यों भयभीत खड़ा है ?
और इण्डिया नहीं उगाता फिर भी खता क्यों मोटा है ?
तुम भारत पर भारी हो, मैं भारत का आभारी हूँ
आचरण के इस अंतर का व्याकरण मुझको समझाओ
पोषण है कर्तव्य हमारा, शोषण है अधिकार तुम्हारा
ऐसा अब मत और बताओ
मेरी जान दाव पर है तो तुम भी अपनी जान लगाओ ."
-----राजीव चतुर्वेदी

Saturday, June 7, 2014

ये कैसा घर है ? ...कौन रहता है यहाँ ?

"ये कैसा घर है ?
कौन रहता है यहाँ ?
रातरानी की सुगंधों से यह महरूम है
गौरैया भी यहाँ नहीं रहती
हवाएं आकर यहाँ लौट जाती है
गंभीर दिखने की कोशिश में
मनहूस से कुछ लोग दिखते हैं यहाँ
यहाँ बच्चे तो हैं पर उनके दादी -दादा नहीं दिखते
और तुलसी का घरोंदा है कहाँ ?
एक दिन बच्चे यहाँ के पूछ बैठेंगे

आँगन किसे कहते हैं लोग ?
सुना है लिफ्ट से जिस सभ्यता ने नापी थी बुलंदी
लौट आयी है धरातल पर
फ्लेट की चाबी लिए
तेरे गुमान का गाँव के आँगन को अनुमान होगा
ये कैसा घर है ?
कौन रहता है यहाँ ?
गंभीर दिखने की हर कोशिश में मनहूस सा दिखता हुआ
फ्लेट है यह यहाँ आँगन नहीं होता
लिफ्ट ले कर चढ़ने वाले उतरते हैं धरातल पर."
---- राजीव चतुर्वेदी

Sunday, June 1, 2014

स्नेह के ये सारे शब्द अपने पास रख लो

"पेड़ बादल घटाएं
गुफ्तगू सी करती यह बहती हवाएं
चाँद तारे और सूरज
जहन में झांकती सी सूरत कई
आत्मा की तलहटी में यादें तेरी
छूटती है तो छटपटाहट होती ही है
इस सफ़र में हमसफ़र किसको कहूं
रस्ते में छूटते हैं रिश्ते सभी
मैं भी चलता गया
तुम भी चलते बने

यह सफ़र है और तुम परिदृश्य हो केवल
जिस्म मेरा था, जज्वात मेरे थे,
मरा भी मैं ही था हर बार रिश्तों में
मरा भी मैं ही था हर बार किश्तों में
स्नेह के ये सारे शब्द अपने पास रख लो
मुझे मरना ही होगा एक दिन अपने अकेले में ."
----- राजीव चतुर्वेदी