Tuesday, October 15, 2013

रावण को श्रद्धांजलि और राम को भी प्रणाम !!

"रावण उत्तम कुल का था. वह मेरठ (उत्तरप्रदेश) का रहनेवाला था और उसकी पत्नी मंदोदरी जैसलमेर (राजस्थान ) की. वह पुलत्स्कर का नाती और विशेश्रवा का बेटा था. पुलत्स्कर ने विश्व संस्कृत को प्रथम रंगमंच दिया था और ग्रीक नाट्य साहित्य में उसका उल्लेख "पुलित्ज़र" के नाम से मिलता है. रावण की राजसत्ता बांदा / चित्रकूट के दंडकारण्य से श्री लंका तक थी. वह ज्योतिष का प्रकांड विद्वान् था. उसकी लिखित "रावण संहिता" ज्योतिष विज्ञान की महान कृति है. रावण ने नृत्य और योग के मानक प्रस्तुत किये. प्रायः जो विद्वान् और पढ़े लिखे होते हैं वह कायर होते हैं और निर्णायक मौकों पर आर -पार की लड़ाई या युद्ध से बचते हैं पर रावण विद्वत्ता और साहस का अद्भुत संयोग था. वह महान विद्वान् और प्रतापी योद्धा था. वह रक्षसः आन्दोलन का प्रणेता था. इसीलिए उसे राक्षस कहा गया. हुआ यह कि उस समय इंद्र का राज्य था उसे लोग इंद्र इस लिए कहते थे क्यों कि वह इन्द्रीय हरकतें यानी कि वासना में लिप्त था . इंद्र एक आदिवासी /बनवासी कन्या शचि का अपहरण कर लाया था जिसका रावण ने विरोध किया और राजा इंद्र के इस अत्याचार के विरुद्ध पुरजोर आवाज़ उठाई. जो लोग राजा इंद्र का समर्थन करते हुए उसके सुर में सुर मिला रहे थे वह "सुर" कहलाये और जो लोग विरोध की आवाज़ बुलंद कर रहे थे वह "असुर" कह लाये. रावण के विरोध से नाराज़ इंद्र ने रावण और उसके समर्थकों को राज्य -सुरक्षा देने से मना कर दिया तो रावण ने कहा हम तुम्हारी सरकार को अमान्य करते हैं और अपनी सुरक्षा स्वयं कर लेंगे इस प्रकार रक्ष सह आन्दोलन चला और रक्ष +सह को कालान्तर में राक्षस कहा जाने लगा. रावण इन्द्र जैसे इन्द्रीय हरकतें करनेवाले कुकर्मी अईयास और कुबेर जैसे पूंजीपतियों का वह अक्सर लात -जूता संस्कार करता था. राम से उसका द्वंद्व दो नायकों का द्वंद्व था.-----रावण को श्रद्धांजलि और राम को भी प्रणाम !!" ----राजीव चतुर्वेदी

अल्लाह की आँख में धूल मत झोंक लल्ला !! ईद -उल-जुहा मुबारक !!


" ल्लाह की आँख में धूल मत झोंक लल्ला .कुर्बानी का मतलब है किसी अपने अजीज की कुर्बानी . यह क्या हुआ कि शाम को बकरी खरीदी और सुबह काट डाली और चिल्लाने लगे कुर्बानी ...कुर्बानी ... दरअसल कुर्बानी तो बकरी देती है ...अपनी जान की कुर्बानी और आप उसका गोस्त खा कर जश्न मना कर चिल्लाते हो कुर्बानी ...आपने कौन सी कुर्बानी दी है ? ...यह बकरी की कुर्बानी नहीं उस मासूम शान्तिप्रिय शाकाहारी विवश जानवर के साथ विश्वासघात है ...और अगर इसे कुर्बानी कहते हैं ...और अगर इस कुर्बानी से सबब मिलता है ...अल्लाह खुश होता है ...तो इज़राइल और अमेरिका तो तुम्हारी चुन -चुन कर कुर्बानी देते हैं ....जैसे तुम मासूम अहिंसक बकरी /ऊँट /भेड़ का क़त्ल करते हो और कहते हो कुर्बानी वैसी तो कुर्बानी इज़राइल और अमेरिका अक्सर करते हैं ...उनको भी इस कथित कुर्बानी का सबब मिलता होगा तभी तो यह देश फल-फूल रहे हैं, सरसब्ज हैं, खुशहाल हैं, बरक्कत कर रहे हैं . खुदा की आँख में धूल झोंकने वालो खुद से पूछो किस अज़ीज की कुर्बानी दी है ...दीन के लिए क्या कुर्बानी दी है ?...ईमान के लिए क्या कुर्बानी दी है ? 

"झूठ झटके का था इसलिए नहीं खाया उसने,
सच को उसने सचमुच हलाल कर डाला ."
!! ईद -उल-जुहा मुबारक !! " ----- राजीव चतुर्वेदी


"मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी ईश्वरीय कृति हैं ... बल्कि अवधारणा तो यही है कि मानव ईश्वरीय कृतियों में अंतिम कृति है ... यह सनातन अवधारणा है , इस्लाम की भी है, ईसाइयों की भी ,बौद्धों की भी ,यहूदियों की भी ,पारसीयों की भी (मार्क्सवादी मजहब को मानने वाले ही इस अवधारणा से असहमत हैं ) ... फिर ईश्वर की एक कृति को दूसरी कृति नष्ट करे यह अधिकार कहाँ से मिल गया ? ...ईश्वर /ईसा /अल्लाह तो नहीं दे सकते ? ...भला कौन पिता अपनी कमजोर संतति को मारने का हक़ अपनी ताकतवर संतति को देगा ? ... निश्चय ही पशु बलि / कुर्बानी ताकतवर संतति मानव के द्वारा अपने अधिकार के विस्तार ही नहीं पशुओं के प्रकृति पर हक़ पर अतिक्रमण की कहानी है ... पहले राजा नरबलि देते थे फिर हम कुछ और सभ्य हुए तो कानूनन इस पर रोक लगी ...आश्चर्य इस बात पर है कि ईश्वर /अल्लाह /ईसा केवल शाकाहारी सीधे अहिंसक जानवरों की बलि पर ही खुश होते हैं ? ... अरे भाई अपने पालतू या सड़क के फालतू कुत्ते की बलि या कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ...शेर से ले कर सांप तक किसी हिंसक प्राणी की कुर्बानी क्यों नहीं करते ? ... शाकाहारी प्राणीयों का गोस्त ही क्यों खाते हो ?
मानव ने मजहब बनाए और अलग अलग भयावह रूपों में यमराज की कल्पना कर ली पर पशुओं की भी तो सुनो ...नेपाल के काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के इलाके के भैंसे / बकरे बताते होंगे यमराज त्रिपुण्ड लगाता है ...कामाख्या मंदिर- गौहाटी के इलाके के बकरे /भैंसे बताते होंगे कि यमदूत तिलक लगाता है और इसी तरह बकरीद पर गाय /भैंस /ऊँट /भेड़ /बकरे आपस में बताते होंगे कि यमराज गोलटोपी पहन कर आता है और मजहब से मुसलमान होता है ...कुल मिला कर यमदूत की शक्ल में साम्प्रदायिक आरक्षण है . बहरहाल जितना गोश्त बकरीद पर खाया जाता है उतना गोश्त होली पर भी खाया जाता है .
क़त्ल तो क़त्ल है फिर चाहे मानव का हो या पशु का ...क़त्ल को हर हाल में केवल आत्म रक्षा के लिए ही जायज ठहराया जा सकता है ...मानव पर संसद थी ..विधान सभा थी ...एक जुट करती भाषा थी तो पहले अपनी बलि प्रतिबंधित करने के क़ानून बनाए फिर ताकतवर मानव इकाइयों ने कमजोर मानव इकाइयों का शोषण किया प्रकृति के शोषण किया फिर अपना पोषण करने वाले जल जंगल जमीन का शोषण किया ...फिर अब बारी शाकाहारी प्राणियों की थी तो उनकी बलि /कुर्बानी होने लगी .
ईश्वर /अल्लाह /ईसा अगर है तो कभी अपनी ही निर्दोष कृति के क़त्ल पर खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा निर्दोषों के क़त्ल पर खुश होता है तो मैं उसकी निंदा करता हूँ ...मेरा ईश्वर कातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकता ...मेरा ईश्वर क़त्ल से खुश नहीं हो सकता ...और अगर ईश्वर /अल्लाह /ईसा क़त्ल से खुश होता है तो उसके मुंह पर थू ." ----- राजीव चतुर्वेदी