Sunday, October 18, 2015

एक अहसास चीख कर चुप होता है

" एक अहसास चीख कर चुप होता है
एक उपहास दिल के दालानों में पसर कर बैठा
मैं जानता हूँ
जिन्दगी की इस धूप में पेड़ की परछाईं सी जो छाया है
वह तुम्हारी हमशक्ल सी लगती है मुझे

शायद तुम्हीं हो
ओस से गिरते हमारे अहसास दिन में सूख जाते हैं
चांदनी क्यों चीखती थी रात को ?
सूरज सबेरे ही सवालों से घिरा यह पूछता है
सुना है वेदना अखबार में बिकने लगी है
मैं अकेला और तुम तनहा से तारों में कहीं अब दूर बैठे हो
हो सके तो दीवाली मनाने को मेरे पास चले आना
मैं तारों में खोज लेता हूँ तुम्हें पर बात बाकी है
इन हवाओं की गुजारिश प्यार करती सी गुजरती है
मैं अभी ठहरा नहीं हूँ
इस सफ़र में जब कभी ठहरूंगा तो बता दूंगा
प्यार, मौसम, यह हवाएं, चांदनी, वह धूप सूरज की,
पेड़ की छाया, काया हमारी और यह माया यहाँ रुकती नहीं है
रास्ते में तुम यहाँ अब कब मिलोगे ? -- प्रश्न यह पूछो नहीं
आभाष को अहसास कर लेना ."
----- राजीव चतुर्वेदी

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