Wednesday, April 4, 2012

हर हरामखोर के चेहरे पे नूर था

"सब जानते हैं वह गटर थी,
गंगा में क्या मिली कि उसको गुरूर था. 
वह लड़खड़ा गया था किसी हादसे को सुन,
लोगों की राय में उसको सुरूर था.
वह घूसखोर जिसके लिए पेशकार ले रहा था घूस,
वकीलों की अब निगाह में वह भी हुजूर था.
मेहनतकशों के मुकद्दरों में थीं मायूसियां लिखी,
 हर हरामखोर के चेहरे पे नूर था. "                ----राजीव चतुर्वेदी   

2 comments:

अशोक सलूजा said...

खतरनाक! पर सच.........!
बधाई!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत दमदार..