"हिन्दी क्यों क्रमशः मर रही है ? उर्दूभाषी समाज हो या अंगरेजी भाषी समाज सभी अपनी भाषा के आचरण और व्याकरण के प्रति सतर्क है पर हिन्दी जगह जगह गलत लिखी जा रही है, न भाषाई आचरण सही है न व्याकरण और न ही कोई मानकीकरण. परिणाम कि आप कहना कुछ चाहते हैं कहते कुछ हैं. कई बार यह किसी व्यक्ति के लिए अनापेक्षित रूप से अतिक्रमण होता है और प्रायः संक्रमण. हिन्दी हमारे राष्ट्रीय गौरव और संस्कृति की प्रतीक पताका है. इसे अपने ज्ञान की उत्ताल हवाओं में निर्बाध फहराइए पर भाषा के संस्कार, आचरण और व्याकरण को ध्यान में रख कर.---- सादर !!" ----- राजीव चतुर्वेदी
4 comments:
आप सच कह रहे हैं राजीव जी,,,,,इसीलिए हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए..की लोग वापस हिंदी की तरफ मुड़ें...आज हिंदी बस गूगल में छिप गयी है....सादर
आज सचमुच हिन्दी मर रही है राजीव सर अपने मूल स्वरूप मे ही नही बल्कि अपनी समस्त बोलियों उपबोलियों के साथ.यूं तो परिवर्तन प्रकृ्ति का नियम है और समाज का भी इसलिए लम्बी ऎतिहासिक अवधि मे संस्कृ्त ,पाली और प्राकृ्त बोलते बोलते समाज कब आधूनिक भारतीय भाषाएं बोलने लगा इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नही निर्धारित हो सकती.लेकिन आज परिवर्तन की गति द्रुत है और वह एक हद तक बाजारवादी सांस्कृ्तिक प्रदूषण का शिकार है
आज सचमुच हिन्दी मर रही है राजीव सर अपने मूल स्वरूप मे ही नही बल्कि अपनी समस्त बोलियों उपबोलियों के साथ.यूं तो परिवर्तन प्रकृ्ति का नियम है और समाज का भी इसलिए लम्बी ऎतिहासिक अवधि मे संस्कृ्त ,पाली और प्राकृ्त बोलते बोलते समाज कब आधूनिक भारतीय भाषाएं बोलने लगा इसकी कोई स्पष्ट सीमा रेखा नही निर्धारित हो सकती.लेकिन आज परिवर्तन की गति द्रुत है और वह एक हद तक बाजारवादी सांस्कृ्तिक प्रदूषण का शिकार है
यथासंभव अधिक और सही प्रयोग, यही निवारण है
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