"आओ फरिश्तों से कुछ बात करें
बहुत उदास है ये रात
कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर
समझलो तुम सुहागिन हो
तुम्हारी मांग में शफक सिन्दूर भर कर खोगई है भोर में
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
तन्हाईयों में गूंजती रुबाईयों जैसा
धूप में सूखती रजाईयों जैसा
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
हादसे में हाँफते सुबह के अखबार में सिमटा
देख लो तुम्हारी गोद में सर रखे सूरज सा लेटा हूँ मैं
एक रोशन सच चरागों से चुरा लाया हूँ मैं
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं खो जाऊंगा तह किये कपड़ों में रखे स्नेह के सुराग सा
मैं याद आऊँगा सूनी मांग से सिन्दूर के संवाद सा
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं जाता हूँ सितारों ने बुलाया है दूर से मुझको
ओढ़ लो कोहरे की चादर
बहुत सर्द है रात. " ----राजीव चतुर्वेदी
बहुत उदास है ये रात
कोहरे के लिहाफ ओढ़ कर शायद तुम हो जो झांकती हो मुंडेरों से अभी
चाँद की बिंदी लगा लो अपने माथे पर
समझलो तुम सुहागिन हो
तुम्हारी मांग में शफक सिन्दूर भर कर खोगई है भोर में
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
तन्हाईयों में गूंजती रुबाईयों जैसा
धूप में सूखती रजाईयों जैसा
मैं लौट के आऊँगा देख लेना
हादसे में हाँफते सुबह के अखबार में सिमटा
देख लो तुम्हारी गोद में सर रखे सूरज सा लेटा हूँ मैं
एक रोशन सच चरागों से चुरा लाया हूँ मैं
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं खो जाऊंगा तह किये कपड़ों में रखे स्नेह के सुराग सा
मैं याद आऊँगा सूनी मांग से सिन्दूर के संवाद सा
तुम्हारी आँख में काजल लगा दूं रात का
मैं जाता हूँ सितारों ने बुलाया है दूर से मुझको
ओढ़ लो कोहरे की चादर
बहुत सर्द है रात. " ----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
Ek aur ati uttam rachna aapki taraf se. Prastuti bhi bahut achhi hai.
Is kavita ko maine apne blog par bhi publish kiya hai. Is link ko check karein http://dilsedesishayari-poetryblog.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html
Luv & Regards
Rajesh Kainth
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