Saturday, April 7, 2012

"पेड न्यूज"

 
"आज़ादी के दौर में पत्रकारिता परवान चढी थी."उद्दंड मार्तंड" और "सरस्वती" के दौर में एक विज्ञापन निकलता है --"आवश्यकता है सम्पादक की, वेतन /भत्ता - दो समय की रोटी -दाल, अंग्रेजों की जेल और मुकदमें" लाहौर का एक युवक आवेदन करता है और प्रख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी उसको सम्पादक नियुक्त करते हैं. सरदार भगत सिंह इस प्रकार अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत करते हैं. तब पत्रकारिता प्रवृत्ति थी अब आज़ादी के बाद 'वृत्ति' यानी आजीविका का साधन हो गयी. पहले पत्रकारिता मिशन थी अब कमीनो का कमीसन हो गयी. भगत सिंह ने जब असेम्बली बम काण्ड किया तो अंग्रेजों को उनके विरुद्ध कोई  भारतीय गवाह नहीं मिल रहा था. तब दिल्ली के कनाटप्लेस पर फलों के जूस की धकेल लगाने वाले सरदार सोभा सिंह ने अंग्रेजों के पक्ष में भगत सिंह के विरुद्ध झूटी गवाही देकर भगत सिंह को फांसी दिलवाई और इस गद्दारी के बदले सरदार शोभा सिंह को अंग्रेजों ने पुरुष्कृत करके " सर" की टाइटिल दी और कनाट प्लेस के बहुत बड़े भाग का पत्ता भी उसके हक़ में कर दिया. मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह इसी सरदार शोभा सिंह के पुत्र हैं. अब पत्रकारों को तय ही करना होगा कई वह पुरुष्कृतों के प्रवक्ता हैं या तिरष्कृतों के. यानी पत्रकारों की दो बिरादरी साफ़ हैं एक -- गणेश शंकर विद्यार्थी /भगत सिंह के विचार वंशज और दूसरे सरदार शोभा सिंह के विचार बीज. 2G की कुख्याति में हमने बरखा दत्त, वीर सिंघवी, प्रभु चावला और इनके तमाम विचार वंशज पत्रकारों को "दलाल" के आरोप से हलाल किया फिर भी पत्रकारिता के तमाम गुप चुप पाण्डेय अभी बचे हैं. विशेषकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया की मंडी की फ्राडिया राडिया रंडीयाँ और दलाल अभी भी सच से हलाल होना शेष हैं. "पेड न्यूज" और "मीडिया मेनेजमेंट" जैसे शब्द संबोधन वर्तमान मीडिया का चरित्र साफ़ कर देते हैं कि मीडिया का सच अब बिकाऊ है टिकाऊ नहीं. क्या है कोई संस्था जो पत्रकारों पर आय की ज्ञात श्रोतों से अधिक धन होने की विवेचना करे ? पहले सच मीडिया बताती थी और न्याय न्याय पालिका करती थी. मीडिया और न्याय पालिका ही दो हाथ थे जो रोते हुए जन -गन -मन के आंसू पोंछते थे. अब ये दोनों हाथ जनता के चीर हरण में लगे हैं. पत्रकारों से प्रश्न है --"सच" में तो सामर्थ्य है पर क्या वर्तमान में मीडिया सच की सारथी है या इतनी स्वार्थी है कि सच की अर्थी निकाल रही है."
                                                                    
---- राजीव चतुर्वेदी
"सवाल यह नहीं कि आप पत्रकार है ...सवाल यह नहीं कि आप बुद्धिजीवी है ...सवाल यह है कि आप तिरष्कृतों के प्रवक्ता हैं या पुरष्कृतों के ? ....आप बुद्धिजीवी है या बुद्धिखोर ? ...आप अगर बुद्धिजीवी हैं तो यह भी बताइये कि आप वृहष्पति की परम्परा के हैं या शुक्राचार्य की ?...और यह भी तो बताइये कि सत्य बोलना आपका संस्कार है या इसकी शर्तें हैं ...सत्य के ...सूचना के ...संवेदना के ...समाचार के आढ़तिये को क्या पत्रकार कहा जा सकता है ? ...इस दौर में व्यथा वाचक से ज्यादा कमाते हैं कथा वाचक ...सत्य ...सूचना ...समाचार ...संवेदना यदि आढ़त पर ...दुकान पर बिकने बाली चीज हो गयी तो जिसकी क्रय क्षमता होगी वही खरीदेगा सत्य /सूचना /समाचार और संवेदना ...और जिसकी क्रय क्षमता नहीं होगी वह क्या करेगा ? फिर क्यों कहते हो Mass Media यानी जन संचार , क्यों नहीं कहते अपने आपको Class Media यानी 'प्रतिष्ठितों का प्रचार' ...ऐसे बाजारू परिदृश्य में दूरदर्शन की सामाचार सुंदरियां समाचार कोठे पर बैठी हैं बस अंतर यह है कि गुजरे जमाने की वैश्या मुजरा सुनाती थी और यह समाचार का शिजरा सुनाती हैं ....जब समाचार का सरोकार सत्य से नहीं इष्ट साधना से होगा तो उस इष्ट साधना का अभीष्ट कोई समाचार भवन यानी News House नामक कोठा होगा ...बाजार का आचरण और बाजार का व्याकरण लागू होगा ....सत्य की प्रतिबद्धता के संस्कार की बात यहाँ ठीक वैसी है जैसे कोई रण्डी के कोठे पर हनुमान चालीसा पढने लगे ... इन समाचार कोठों पर समाचार के साथ सुन्दर देहयष्टि बेचती समाचार सुंदरियां हैं ....कुछ गजरा सा बेचते, कुछ मुजरा सा बेचते किसी हूर के नूर पर गुरूर करने वाले किसी 'शब्द भडुए' को हम पत्रकार कहने लगते हैं जो नूर ,हूर .शराब के सुरूर , और किसी नेता या नौकरशाह से परिचय होने के गुरूर में इन शब्द कोठों पर शब्द सारंगी, सूचना कब्बाली गाता है , कजरा ,गजरा ,मुजरा सब कुछ सुनाता है बस समाचार नहीं सुनाता क्योंकि 'समाचार' यानी कि 'सम' + 'आचार " (आचरण ) यानी कि Equitable Attitude की जरूरत होती है . आत्ममुग्धता से उबरो हे पत्रकार और बताओ कि तुम बुद्धिजीवी हो या बुद्धिखोर ? ...यह भी बताओ कि तुम तिरष्कृतों के प्रवक्ता हो या पुरष्कृतों के ?...आम आदमी के प्रवक्ता हो या ख़ास आदमी के ? ...यह भी तो बताइये कि सत्य बोलना आपका संस्कार है या इसकी शर्तें हैं ...और अगर सत्य बोलने की शर्तें हैं तो क्या ?" ------ राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

Unknown said...

बहुत सुंदर