Sunday, April 1, 2012

ये कविता मेरी है गर वेदना तेरी हो तो बताना तू भी मुझको

" यह विम्ब बिखरेंगे तो अखरेंगे, अखबार बन जायेंगे
समेटोगे तो आंसू पलकों पे गुनगुनाएगे ,
अमावस को तारे भी अवकाश में हैं
मुसाफिर सो गए हैं सोचते सुनसान से सच को
यह सच है कि सूरज डूबा था महज हमारी ही निगाहों में
 चीखती चिड़िया का चेहरा और गिद्धों का चरित्र
फूल की पत्ती पे वह जो ओस है अक्स आंसू का
यह विम्ब बिखरेंगे तो अखरेंगे अखबार बन जायेंगे
समेटोगे तो आंसू पलकों पे गुनगुनाएगे
सहेजोगे तो कविता कागजों पर शब्द बन कर वेदना का विस्तार नापेगी
वह जो घर पर आज सहमी सी खड़ी है छोटी बहन सी भावना मेरी
आसमान को देखती है एक चिड़िया सी
उसकी निगाहों में सिमटा आसमान शब्दों में समेटो तो नदी की मछलियाँ भी मुस्कुरायेंगी
पीढियां भी संवेदना की साक्षी बन कर तेरी कविता गुनगुनायेंगी
यह विम्ब बिखरेंगे तो अखरेंगे, अखबार बन जायेंगे
समेटोगे तो आंसू पलकों पे गुनगुनाएगे.
ये कविता मेरी है गर वेदना तेरी हो तो बताना तू भी मुझको
यह विम्ब बिखरेंगे तो अखरेंगे अखबार बन जायेंगे
समेटोगे तो आंसू पलकों पे गुनगुनाएगे." ----राजीव चतुर्वेदी

5 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

Nice .

Welcome to

ब्लॉगर्स मीट वीकली (37) Truth Only
http://hbfint.blogspot.in/2012/04/37-truth-only.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत भाव भरी रचना

सदा said...

बहुत ही बढि़या।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर लिखा ...उम्दा... वाह

प्रवीण पाण्डेय said...

सिमटना, मिटना, सहमकर टपकना, आँसू को स्वयं ही नहीं पता।