"ज्ञान के जुगनू और ये जंगल,
सच बताना तुम कहाँ हो ?
खो गए क्या ख्वाब में ?
ध्रुव तारा दिशा बतलाता भी कैसे ?
बादलों के बीच घटाएं थीं घमंडी सी
समंदर में सहमे से हम नाव पर बैठे तो थे
यह सच है डूबने से बचे थे बैठ कर उस नाव पर हम
पर भीगने से भागते तो भागते कैसे ?
बादलों की व्यख्या बरसात बन कर आ गयी थी
ज्ञान के जुगनू और ये जंगल, ये बादल, ये घटाएं
धुएं के बीच वह ध्रुव तारा बेचारा पूछता है अब पिता सा
यह बतलाओ तुम्हें जाना कहाँ है ?
ज्ञान के जुगनू और ये जंगल,
सच बताना तुम कहाँ हो ?
ध्रुव तारा दिशा बतलाता भी कैसे ?
बादलों के बीच घटाएं थीं घमंडी सी." -----राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
hamesha ki tarah sunder kaavya
ब्लॉग जगत में आपका बहुत बहुत स्वागत है!
आशा है आपके निष्पक्ष विचारों के प्रसार में ये मंच भी सार्थक होगा|
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