नृत्य देखा क्या थिरकती आत्मा का
"नृत्य देखा क्या थिरकती आत्मा का,
नेह नचाता है, नाचती देह है --- देखो,
थिरकती है जो लय बन कर प्रलय के पार जाती है,
धड़कती है जो आत्मा आहटें बन कर दिल में हमारे,
रक्त की लय व्यक्त होती है जहां परमात्मा का प्रेम पाती है,
आहटें संगत में हों तो संगीत बनती हैं,
बिखरी हों तो सम्हालो अब उन्हें तुम शोर बन जाएँगी,
आत्मा की आहटों पर जो थिरकता है वही है नृत्य समझे क्या,
नेह नचाता है नाचती देह है --- देखो." ---- राजीव चतुर्वेदी
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