Monday, February 27, 2012

हम बबूल के पेड़ हैं

 
" हम बबूल के पेड़ हैं
ओस हम पर भी गिरती है कवियों को दिखती नहीं
बसंत का हमसे क्या वास्ता
पतझड़ भी गुजर जाता है खाली हाथ
हमारे पौधे कोई नहीं लगाता
हमारे पास तितलियाँ भी नहीं आतीं
हमारी छाया में प्रेमिकाएं गाना भी नहीं गुनगुनातीं
हमारी जड़ों में कोई पानी भी नहीं लगाता
हम बबूल के पेड़ हैं
लकड़ी से लेकर छाल तक
दवा और मजबूती के इस्तेमाल तक
सभ्यता की सेना के जवानो से
हम खड़े हैं सरहदों पर
हम लगे तो हैं बबूलों की तरह पर खड़े हैं उसूलों की तरह
शहरों में चरित्र का ऊसर और उसमें उसूल
और जंगल के बियावान में बबूल
दाधीच की हड्डी हैं हम
हर सभ्यता का अंतिम हथियार
दिल में उसूल और जंगल में बबूल
ओस हम पर भी गिरती है पूरी रात पर कवियों को दिखती नहीं
उसूलों और बबूलों से जब भी उलझोगे नुच जाओगे
अपेक्षा करने वालों की ही उपेक्षा होती है
हमको तुमसे कोई अपेक्षा नहीं
हम उसूल के खेल हैं हम बबूल के पेड़ हैं
ओस हम पर भी गिरती तो है पर कवियों को दिखती नहीं. " -- राजीव चतुर्वेदी
 

No comments: