"धरती की हथेली पर सड़क जब दौड़ती हो भाग्यरेखा सी,
पंचांग के पन्नो को पढ़ता ज्योतिषी बांचता हो एक ठहरी सी इबारत,
असमर्थता की ओस मैं नहाते नक्षत्र नज़रें जब चुराते हों,
तो ऐसे मैं तुझे कैसे बताऊँ कि योद्धा नक्षत्र के मोहताज़ नहीं होते,
सरताज और मोहताज़ के बीच सड़क तो दौड़ती है भाग्य रेखा सी
सफलता की सूचकांक को देखो तो, पराक्रमी पंचांग नहीं पढ़ते
छत्र पाने को उठे हैं पैर जिनके नक्षत्र पर होती नहीं उनकी निगाहें,
धरती की हथेली पर सड़क जब दौड़ती हो भाग्यरेखा सी." -------राजीव चतुर्वेदी
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