"जिन्दगी की राह में जो प्यार के पौधे थे रोपे, सुना है अब बड़े वह हो गए हैं फूल कुछ हैं, तितलियाँ कुछ, छाँव सी यादें और सूखी पत्तीयाँ भी प्यार की सूर्य जब हो सामने परछाईयाँ पीछे ही दिखती हैं देख लो जज़बात की इस धूप में साए सी मेरी याद को परछाईयाँ कहते हैं लोग रात जब होती है तो परछाईयाँ दिखती नहीं,-----जिन्दगी की रात अब आने को है समझ लो शाम से सत्य अब संकेत देता है कदों से जो बड़ी थी, कदम पर जो चली थी अब बिछ्ड़ती हैं सूर्य जब ढलता है तो फिर साथ देता ही है कौन ? समय के सूचकांक पर मूल्य अपना भी अंको. " ----- राजीव चतुर्वेदी
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