Wednesday, March 28, 2012

उसके हाथ में कांटे और सपनों में गुलाब था



"उसके हाथ में कांटे और सपनों में गुलाब था,
जिन्दगी में खालीपन जुबां पे इन्कलाब था
पाँव में जूते नहीं वह मंजिलें पहने चला था
उसकी सूखी सी आँखों में उफनता सैलाब था
रास्ते रिश्तों को लेकर चल पड़े थे मकानों से दूर
भावना सदमें में थी भीतर भी एक फैलाब था
रिश्ते सर्द हो चले थे, सांस सहमी थी, दिशाएं शून्य थी
समंदर की थी ख्वाहिश उसे, मेरे दिल में तो  तालाब था."  ----राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

रश्मि प्रभा... said...

पाँव में जूते नहीं वह मंजिलें पहने चला था
उसकी सूखी सी आँखों में उफनता सैलाब था- वाह

अशोक सलूजा said...

शब्दों में एहसासों का सैलाब है ...
शुभकामनयें!

प्रवीण पाण्डेय said...

किसी को चाह को कहाँ मिलता है उसका जहाँ।