मैं एक लडकी थी, करती भी क्या ?
"मैं एक लडकी थी
करती भी क्या ?
गुड़िया के बर्तन मांजे थे फिर
घर के बर्तन भी माँजे
करती भी क्या ?
शोषण -पोषण के शब्द खदकते थे मन में
मैंने भी सब्जी के साथ उबाले हैं कितने
वह प्यार खनकते शब्दों सा खो गया कहीं खामोशी से, फिर मिला नहीं
"ममता-समता" की बात शब्दकोषों तक से पूछी बार-बार
विश्वास नहीं होता था रिश्तों का सच कुछ सहमा, कुछ आशंकित सा
शब्दकोषों से कोसों दूर खड़ा है क्यों ?
मैं एक लडकी थी
करती भी क्या ?
काबलियत और कातिल निगाहों की निगहबानी में
रास्ते तो थे भीड़ भरे पर उसमें मेरी राह बियावान थी
गिद्धों की निगाहें और
उससे छलकती शिकार के प्रति शुभकामना भी मेरे साथ थी
सहानुभूति का चुगा जब कभी खाया तो
बार बार लगातार उसका कर्ज भी चुकाया
और जब नहीं खाया तो खिसियाया शिकारी सा हर रिश्ता नज़र आया
मुझे सच में नहीं पता कि मैं किसी प्रेम का उत्पाद थी
या प्रेम के हमशक्ल प्रयाश्चित का प्रतिफल पर
मैं एक लडकी थी
करती भी क्या ?
चरित्र के वह फ्रेम जिसमें
मुझे पैदा करने वालों की तश्वीर छोटी पड़ती थी
मुझे फिट होना था
किसी को क्या पता कि मेरे मन में भी एक अपना निजी सा कोना था
सपने थे
शेष बचे कुछ सालों का समन्दर जो उछलना तो चाहता था पर था ठहरा हुआ
कुछ गुडिया थी ओझल सी
कुछ यादें थी बोझल सी
कुछ चिड़िया अभी चहकती थीं
कुछ कलियाँ अभी महकती थीं
कुछ गलियाँ अभी बुलाती हैं मुझको यादों की बस्ती में
कुछ शब्द सुनायी देते हैं जो फब्ती थे
कुछ गीत सुनायी देते हैं जो सुनती थी तो अच्छा सा लगता था
वर्तमान में जीने की जब चाह करी तो अपनों ने कुछ सपनो से गुमराह किया
कुछ सपने ऐसे भी थे जो गीत सुनाया करते थे फिर ग़ुमनाम हुए
कुछ सात्विक से जो रिश्ते थे पर हम उनमें बदनाम हुए
बचपन में गुडिया के कपड़ों पर पैबंद लगाया करती थी
यौवन मैं अपनी बातों में पैबंद लगाया करती थी
कुछ बड़ी हुई तो संवादों में पैबंद लगाना सीख लिया
वह रिश्ते जो थे आसों के
वह रिश्ते थे विश्वासों के
वह रिश्ते नए लिबासों के
जब थकते हैं तो पैबंद लगाना पड़ता है
मैं सुन्दर सा एक कपड़ा हूँ -- कुछ बुना हुआ,कुछ काढा हुआ,
कुछ उधड़ा सा, कुछ खोया हुआ ख्यालों में
तुम अपनी फटी दरारों में
तुम अपने उलझे तारों में
तुम अपने बिखरे चरित्रों पर
तुम अपने निखरे चित्रों पर
जब भी चाहो चिपका लेना
मैं पाबंदों का दुखड़ा हूँ
मैं पैबन्दों का टुकडा हूँ
मैं एक लडकी थी
करती भी क्या ?" ----- राजीव चतुर्वेदी
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