"कुछ कविता की पैरोडी कहने के आदी हैं पहले कविता का गबन किया फिर वमन किया कुछ शब्दों का मौलिकता का सौंधापन तो स्वाभाविक समझा जाता है शब्दों की सामर्थ्य, शास्त्र की समझ, प्रतीकों का पैनापन अंगारों की आग, झुलसती बस्ती, दावानल से दूर पिघलती वर्फ पहाड़ों की छा जाती है जब अंतर्मन में कोलाहल सी तो कविता आहट करती है खामोशी से जो इत्र दूसरों से ले कर ही महके हैं बेचारे इतने हैं कि हर विचार पर बहके हैं कागज़ के फूल टिके हैं बरसों तक, पर हर बसंत में बेबस है हम तो जंगल के पौधे से हैं खिले यहाँ मिट जाएँगे चर्चे मेरी मौलिकता के बंगले के गमले गायेंगे ये पैरोडी के गीत गुनगुनाने वाले सुन कोयल की पैरोडी कौओं के बस की बात नहीं कुछ चिंगारी, कुछ अंगारे, कुछ तारे, कुछ सूरज , थोड़ा सा चन्दा, शेष चांदनी धूल गाँव की, शूल मार्ग के, भूखा पेट, उदास चूल्हे की चीख चीरती है जब दिल को इतिहासों के उपहासों के तल्ख़ तस्करे, वह महुआ की तरुणाई, प्यार का मुस्काना, वह नागफनी का दंश, वंश बबूलों का वह नाव नदी मैं तैर रही आशंकित सी, दूर चन्द्र के आकर्षण से लहरों का शोर मचाते सागर का भी इठलाना वह देवदार के पेड़, चिनारों के पत्ते, वह मरुथल की झाड़ी में खरगोशों का छिप जाना वह बहनों की मुस्कान अमानत सी मन में, वह बेटी का गुड़िया पर ममता जतलाना वह नन्हे से बच्चे को ममता का घूँट पिलाती माताएं वह बाहर जाते बेटे को बूढ़ी आँखों का उल्हाना वह संसद में बेहोश पड़ा सच भी देखो मकरंदों की बातें भौरों को करने दो इन सब तत्वों पर तेज़ाब गिराओ अपने मन का जो धुंआ उठेगा वह कविता बन जाएगी जो रंग बनेगा वह तेरी कविता का मौलिक रंग कहा जाएगा जो राग उठेगा उसको पहली बार सुना होगा तुमने यह राग रंग की आवाजें जब गूंजेंगी तो शब्द बहेंगे उन बहते शब्दों को लोग कहेंगे कविता है यह." ----राजीव चतुर्वेदी
आप सदैव ही अपनी रचना के माध्यम से ज्वलंत संदेश देते हैं जो कि, समयानुकूल भी होता है और जरूरी भी.... शब्दों मे सार उत्पन्न करने में और शब्दों को सार्थक करने मे वाकई आपको कमाल की महारत हासिल है...और ये विशेषता विरले ही देखने को मिलती है.... कभी कभी तो मनन करने लगता हूँ कि, आपकी रचनाओं की प्रशंसा किस प्रकार से करूँ कि?जब कुछ समझ में नही आता तो मौन रह जाता हूँ।..........मौन।
3 comments:
प्रवाह कविता है..
bahut khub...
आप सदैव ही अपनी रचना के माध्यम से ज्वलंत संदेश देते हैं जो कि, समयानुकूल भी होता है और जरूरी भी....
शब्दों मे सार उत्पन्न करने में और शब्दों को सार्थक करने मे वाकई आपको कमाल की महारत हासिल है...और ये विशेषता विरले ही देखने को मिलती है....
कभी कभी तो मनन करने लगता हूँ कि, आपकी रचनाओं की प्रशंसा किस प्रकार से करूँ कि?जब कुछ समझ में नही आता तो मौन रह जाता हूँ।..........मौन।
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