"त्रिज्या अब सयानी हो गयी है
परिधि का पहरा बहुत गहरा है उस पर
केन्द्र की भी कशमकश तुम जान लो
क्षितिज के छल से सिमटा है अपनी ही निगाहों में
ज्योमिती की हकीकत जिन्दगी की भी जरूरत है
दृष्टिकोणों की नहीं तुम दर्शनों की भी पड़ताल करलो
शून्य से चल कर हमारे आचरण अब एक सौ अस्सी अंश तक अंगडाईया ले रहे है
प्यार के रिश्ते नहीं अब देह के रस्ते कहो तुम और यह भी जान लो
आत्मा से नहीं अब देह से स्पर्श रेखा जो खींची है
परिचय की परिधि का प्रश्न है वह
और तुम हो केन्द्र में
क्षितिज के छल को मरीचिका मान बैठे हो
परिधियों की अवधियों की पैमाइश परिक्रमा से जो करते हैं वो कायर हैं
पराक्रमी तो केन्द्र पर अधिकार करते हैं
प्रयोगों की प्रमेयों तक छल एक निश्च्छल सा, अज्ञान को विज्ञान किसने कहा ?
यक्ष हों या मोक्ष सभी ने कोशिशें की है कि सच को जान जाते वह
परिधियाँ नापनेवाले परीक्षा दे के लौटे है
तीर्थ के अर्थों के जैसी त्रिज्या केन्द्र के संपर्क में है
और तुम सत्य की दे कर परिक्रमा खाली हाथ लौट आये." ----- राजीव चतुर्वेदी
परिधि का पहरा बहुत गहरा है उस पर
केन्द्र की भी कशमकश तुम जान लो
क्षितिज के छल से सिमटा है अपनी ही निगाहों में
ज्योमिती की हकीकत जिन्दगी की भी जरूरत है
दृष्टिकोणों की नहीं तुम दर्शनों की भी पड़ताल करलो
शून्य से चल कर हमारे आचरण अब एक सौ अस्सी अंश तक अंगडाईया ले रहे है
प्यार के रिश्ते नहीं अब देह के रस्ते कहो तुम और यह भी जान लो
आत्मा से नहीं अब देह से स्पर्श रेखा जो खींची है
परिचय की परिधि का प्रश्न है वह
और तुम हो केन्द्र में
क्षितिज के छल को मरीचिका मान बैठे हो
परिधियों की अवधियों की पैमाइश परिक्रमा से जो करते हैं वो कायर हैं
पराक्रमी तो केन्द्र पर अधिकार करते हैं
प्रयोगों की प्रमेयों तक छल एक निश्च्छल सा, अज्ञान को विज्ञान किसने कहा ?
यक्ष हों या मोक्ष सभी ने कोशिशें की है कि सच को जान जाते वह
परिधियाँ नापनेवाले परीक्षा दे के लौटे है
तीर्थ के अर्थों के जैसी त्रिज्या केन्द्र के संपर्क में है
और तुम सत्य की दे कर परिक्रमा खाली हाथ लौट आये." ----- राजीव चतुर्वेदी
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