Thursday, March 29, 2012

समय की सूखी नदी मैं याद की नावें


" समय की सूखी नदी मैं याद की नावें
लोकलाजों से सहमते सत्य से रिश्ते
हमारी आँख की सरहद पे सिमट आया है ये आंसू
शब्द सच के सारथी अब हैं नहीं
शब्द के काँधे पे हैं अर्थ की अब अर्थियां
देह के इन रास्तों से रिश्ते गुजरे हैं बहुत
नाप पाओ तो बताना भावना को भौतिकी से
समय की सूखी नदी और भावना भयभीत है
लोकलाजों से सहमते सत्य का संगीत सुनलो
हमारी आँख की सरहद पे सिमट आया है ये आंसू
भावना भूगोल की होती नहीं है
सोचना फिर सच बताना
रिश्ते जो आकार लेना चाहते थे
होठ पर सहमे खड़े खड़े गुमनाम क्यों थे." ----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कितनी ही ऐसी बातें थीं जो होठों पर आकर रुक गयीं।