"समंदर की सतह पर ओस की बूँदें तलाशी जा रही हैं
सत्य की शव यात्रा में भीड़ के चेहरे चतुर से हैं
हलवाहे और हलवाई के द्वंदों में जो उलझा है वही एक अन्न का दाना
विश्वासों और विवशता की बीच जो उपजा है विश्व उसको मत कहो
शब्दकोषों से न समझो आचरण का व्याकरण
अनुभूतियों के अक्षांश को विस्तार दे दो
फिर समझ लो समंदर जोश है तो ओस कैसी
शातिरों की सांख्यकी में सत्य के कातिल कहाँ पर हैं
और वह अन्न का दाना, हलवाहे की भूख और हलवाई की कमाई
शब्दकोषों से न समझो आचरण का व्याकरण
अनुभूतियों के अक्षांश को विस्तार दे दो." ----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
शब्द शब्दकोष में निकल कर कविता में आते हैं तो अभिव्यक्ति की अथाह शक्ति पा जाते हैं।
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