"समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को
अब तो जन - गण - मन के देखो टूटते विश्वास को
वर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी है
और कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लें
और जितना छल सको तुम छल भी लो
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ
वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. " --- राजीव चतुर्वेदी
अब तो जन - गण - मन के देखो टूटते विश्वास को
वर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी है
और कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लें
और जितना छल सको तुम छल भी लो
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ
वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. " --- राजीव चतुर्वेदी
3 comments:
sukhega bhi nahin
काव्य सौष्ठव से भरी, परिवर्तन की प्यास से धूमायित, घने अन्धकार में भी प्रकाश को देखने की दिव्य-दृष्टि से सज्जित , इन अर्थमयी पंक्तियों के लिए आपको शतशः नमन ।
" जल रहे जंगल तो पिघलेगी बरफ भी एक दिन
प्यास मेरी छलित जन की प्यास होगी एक दिन
साजिशों का चक्र कब तक भ्रमित रखेगा हमें
सत्य का सूरज भी चमकेगा गगन में एक दिन
आँख का हर अश्रु शर गांडीव का बन जाएगा
जयद्रथ करनी के फल पायेंगे निश्चय एक दिन
अभी तो धुन्धुआ रही है आग मन में पीड़ितों के
घिरे धुएं से लपट भी उठ्ठेगी निश्चय एक दिन "
है अभी दिन शेष अर्जुन...
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