Thursday, March 1, 2012

लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है








"समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को
अब तो जन - गण - मन  के देखो टूटते विश्वास को
वर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी है
और कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लें
और जितना छल सको तुम छल भी लो
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. " --- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

Kishore Nigam said...

एक एक पंक्ति में पुरे एक एक समाज की यथास्थिति का इतना सटीक वर्णन
इससे पहले मैंने कभी नहीं देखा . श्रद्धा से नतमस्तक हूँ और आपके स्वर में अपना स्वर मिला देना चाहता हूँ, भले ही यह मेरा स्वर बेसुरा लगे :----
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. "
"यह मेरी प्यास मेरी ही नहीं है
पूरा मरुथल प्यास से अब जल रहा है
टूटते विश्वास मेरे ही नहीं हैं
हिमालय भी पिघलने अब जा रहा है
सत्य का चन्दन शिला पर घिस रहा है
और छल का आवरण भी फट रहा है
अश्रु अपने पोछ डालो हे धनञ्जय !
ऐ जयद्रथ !वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है