Thursday, January 31, 2013

राष्ट्र के प्रतीकों को तोड़ कर आसान किश्तों में हमने राष्ट्र को तोड़ा है

"पुराने नायकों की प्रतीक प्रतिमा हमने तोड़ दी और नए नायक हम पर हैं नहीं अब युवा प्रेरणा किससे ले ? ...शाहरुख खान या सचिन से ? ...नायक समाज का कुतुबनुमा होता है ...नायकों की प्रतिमा /छवि टूटने के साथ ही हमारा कुतुबनुमा भी टूट गया ...आज हम दिशाहीन से खड़े हैं ...वास्तविक नायक सदैव राजनीति से आते हैं ...शंकर, राम, कृष्ण, मुहम्मद , ईसा ...भारत गुलाम था संघर्ष की राजनीतिक प्रक्रिया में नायकों का उदय हुआ लक्ष्मी बाई ,तात्याँ टोपे, नाना फडनवीस, मंगल पाण्डेय, ऊधम सिंह, भगत सिंह ,सुभाष, चन्द्र शेखर आज़ाद, दादा भाई नौरोजी, वर्दोलाई जैसे नायकों का उदय हुआ ...इनमें एक महानायक उदित हुआ महात्मा गांधी तो हम ने ही उसकी ह्त्या कर दी ...गांधी की ह्त्या आज़ाद भारत की पहली आतंकवादी घटना थी और जो तर्क गाँधी जी की ह्त्या के दिए गए उनके अनुसार अगर मारना था तो मारते जिन्ना को ...पर जिन्ना नहीं गाँधी को को मार कर देश का उस समय का सबसे बड़ा प्रतीक तोड़ दिया गया, वह भी स्वदेशी का नारा देने वाले को विदेशी पिस्तौल से मार कर ...अहिंसा के नारे को हिंसा से बुझा कर ...गाँधी मरने के बाद भी प्रतीक प्रतिमा के रूप में समाज और राजनीति को दिशा देता रहा तो वामपंथियों ने उसकी तश्वीर पर भगत सिंह की तश्वीर दे मारी ...अभी भी गाँधी की तश्वीर पूरी तरह हमारे जहन में टूटी नहीं थी तो आंबेडकर की तश्वीर दे मारी ...शेष बची तश्वीर की किरचों पर सुभाष की तश्वीर दे मारी ...हमने सभी की प्रतिमाएं तोड़ डालीं ...सारे कुतुबनुमा तोड़ दिए ...इस्लाम मूर्तियाँ तोड़ कर संस्कृति तोड़ता है इसी लिए बुतशिकन यानी मूर्ती भंजक है ...भारत को पहले मुगलों ने गुलाम बनाया और मूर्ति  भंजन का दौर चला … चुन-चुन कर प्रतीक तोड़े गए ...मुगलों को अंग्रेजों ने गुलाम बनाया तो मुगलों का अतीत बनाम अंग्रेजों के प्रतीक का दुआर चला ...जब आज़ाद हुए तो हमको फिर से गुलाम बनाने की चुनौती मुगलों और अंग्रेजों के सामने थी और हम उनके इस षड्यंत्र में जाने अनजाने शामिल हो गए ...आज हमारे पास कोई राष्ट्र नायक प्रतीक प्रतिमा (व्यक्तित्व ) नहीं है ....राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का ध्रुवीकरण होना बहुत जरूरी है ...प्रतीक प्रतिमा के अभाव में देश का युवा टूटा कुतुबनुमा लिए दिशाहीन सा भटक रहा है ...उसे कभी अन्ना ,कभी केजरीवाल ,कभी राम देव के हाथों गांधी की टिमटिमाती लौ जल कर फिर मसाल बनती दिखती तो है पर बनती नहीं है ....असली प्रतीकों के अभाव में फर्जी प्रतीक गढ़े और मढ़े जा रहे हैं ...किसी भी राष्ट्र को तोड़ने के लिए आवश्यक है उसके प्रतीकों को तोड़ना ...भारत में मूर्ति भंजक मुसलमानों ने यह किया तो गांधी की ह्त्या कर अति हिंदूवादी संगठनों ने भी वही किया .....आज इस राष्ट्र पर कोई प्रतीक प्रतिमा नहीं है ...राष्ट्र के प्रतीकों को तोड़ कर आसान किश्तों में हमने राष्ट्र को तोड़ा है ....इसके पहले हम फिर से गुलाम बने हमको अपने प्रतीकों पर ध्रुवीकरण करना होगा . भारत में प्रतीकों  अभाव  नहीं है प्रतीकों से प्रेरणा लेने के प्रयासों का अभाव है। " -----राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

SANJAR ALOK KIRAN said...

राजीव जी सुंदर अभिव्यक्ति ......
अंधेरा कर रहा आज इंतजार कि कब मिलेगा प्रकाश,
नेतृत्व विहीन देश को फिर चाहिये भगत, सुभाष, जयप्रकाश।

प्रवीण पाण्डेय said...

दिशाहीन है युवा आज का।

VIJAY JAYARA said...

बहुत उम्दा व सारगर्भित आलेख