"यदि
सच न बोलने की और सच न स्वीकारने की गीता /कुरआन /बाइबिल या संविधान की
कसम खा रखी है तो दीगर बात है ...अगर साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखने
की कसम खा राखी है तो दीगर बात है ... वरना क्या यह गलत है कि बाबरी मस्जिद
ढहाई जाने से पहले औरंगजेब ने 6000 से भी
अधिक हिन्दू मंदिर नहीं तोड़े ?...क्या यह गलत है कि इस्लाम कबूल करने से
मना करने पर कई सिख हिन्दुओं के सर कलम करवाए गए ? क्या यह गलत है कि अकेले
जम्मू-कश्मीर में गुजरे सालों में 210 से भी अधिक मंदिर तोड़े गए ? ...क्या
यह गलत है कि जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं को अपनी औरते छोड़ कर पलायन कर
जाने के धमकी भरे पोस्टर हिन्दुओं के घर पर मुसलमान आतंकवादीयों ने नहीं
लगाए ? ...क्या यह गलत है कि लाखों कश्मीरी हिन्दू मुसलमान आतंकियों की वजह
से जम्मू -कश्मीर से बेघर होकर देश के अन्य प्रान्तों में शरणार्थी है
?...क्या यह गलत है कि जम्मू -कश्मीर में सामान्य दिन तो छोड़ दो स्वतंत्रता
दिवस और गणतंत्र दिवस पर भी मुसलमान आतंकवादी तिरंगा नहीं फहराने देते
?... क्या यह गलत है कि हिन्दुओं को अपने ही देश में अपने आस्था के तीर्थ
अमरनाथ दर्शन करने के लिए मुसलमान आतंकियों के हाथो बड़ी संख्या में सामूहिक
क़त्ल-ए-आम का शिकार नहीं होना पड़ता ? ...क्या यह गलत है कि हिन्दुओं को
अमरनाथ और वैष्णव देवी के दर्शन के लिए जज़िया नहीं देना पड़ता ? ...क्या यह
गलत है कि मुसलमानों को हज यात्रा के लिए जो सब्सिडी दी जाती है उसके लिए
भी धन जुटाने के लिए हिन्दुओं से भी टैक्स की उगाही होती है ? ...क्या यह
गलत है कि गुजरात के चर्चित दंगों की शुरुआत गोधरा में रेल से यात्रा कर
रहे 65 हिन्दू तीर्थ यात्रियों को मुसलमानों द्वारा ज़िंदा जला देने पर हुयी
थी ? ...क्या यह गलत है कि मुहम्मद साहब के द्वारा स्थापित मस्जिद
चरार-ए-शरीफ को एक मुसलमान आतंकी मस्तगुल ने जला कर राख कर दिया तो मुसलमान
चुप रहे ? ...क्या यह गलत है कि राम जन्मभूमि (अयोध्या ) और कृष्ण
जन्मभूमि (मथुरा ) पर मस्जिद नहीं बनाईं गईं ? ...क्या यह गलत है कि इस
विराट भू-भाग और क्षेत्रफल वाले इस देश में मस्जिद बनाने के लिए जगह की
कमी तो थी नहीं ? ...क्या यह गलत है कि कभी हिन्दुओं ने किसी मस्जिद को
तोड़ कर कहीं मंदिरनहीं बनाया ? ...क्या यह गलत है कि ईसाईयों ने भी कभी
कोई मंदिर या मस्जिद तोड़ कर चर्च नहीं बनाया ? ...क्या यह गलत है कि इस देश
में जब और जहां-जहां मुसलमानों का राज्य था वहाँ हजारों मन्दिर तोड़े गए
...आज़ादी के बाद इस देश में जम्मू -कश्मीर में 200 से भी अधिक मंदिर तोड़े
गए जबकि गुजरात में गोधरा काण्ड के बाद भड़की प्रति हिंसा में भी एक भी
मस्जिद नहीं तोडी गयी ? ...क्या यह गलत है कि गुजरात में गोधरा में हिन्दू
तीर्थ यात्रियों को ज़िंदा जलाने के बाद भड़की प्रति हिंसा में भी कोई
मस्जिद नहीं तोड़ी गयी ?...क्या यह गलत है कि हिन्दुओं द्वारा बाबरी मस्जिद
तोड़े जाने से पहले देश के विभिन्न हिस्सों में मुसलमान हजारों मंदिर तोड़
चुके थे ? ...क्या यह गलत है कि एक बाबरी मस्जिद का तोड़ा जाना हजारों
मन्दिरों के तोड़े जाने से उत्पन्न प्रति हिंसा थी ? ...क्या यह गलत है कि
गुजरात के दंगे गोधरा काण्ड से शुरू हुए थे और वह गोधरा में ज़िंदा गए 65
हिन्दुओं की घटना से उत्पन्न प्रति हिंसा थी ? ...अगर मुसलमानों का आतंकवाद
यों ही जारी रहा और वोट बैंक की लालच में राजनीति ने साम्प्रदायिकता को
कानी आँख से देखा तो प्रति हिंसा और प्रति आतंकवाद होना तय है ...जब सह
अस्तित्व के सारे प्रयास असफल हो जाएँगे तो लोग सरकार से शिकायत करेंगे और
जब सरकार भी असहिष्णु होगी तो प्रति हिंसा होगी ... मुसलमान आतंकवाद की
हिंसा से घायल राष्ट्र चीख रहा है ...यह चीख ...यह न्याय की गुहार ...यह
शान्ति की अपील ...यह सर्व धर्म समभाव की अपेक्षा अगर सरकार ने अब नहीं
सुनी तो "प्रति हिंसा/ प्रति आतंकवाद" के अलावा और कोई उपाय नहीं है "
----- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
वरना क्या यह गलत है कि बाबरी मस्जिद ढहाई जाने से पहले..
राजीव जी आपसे निवेदन है कि कांग्रेस वाम प्रचारित "बाबरी मस्जिद ढहाई जाने" के स्थान पर 6 दिसंबर की घटना से पहले निरंतर प्रयुक्त शब्द विवादास्पद धर्म स्थल लिखते तो भी अच्छा लगता। प्रेस मीडिया ने जानबूझकर उस दिन से यही शब्द प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। हालांकि न्यायालयों के समस्त निर्णयों में तथा ए एस आई के सर्वे में मंदिर/ मंदिरों की उपस्थिति सप्रमाण है व इस पर हिंदू संबंधित पक्ष को ही स्वीकारा गया है। अतः कार सेवकों व संन्यासियों ने उस दिन भी किसी बाबरी या इबादत की जाने वाली मस्जिद को नहीं ढहाया अपितु अपनी परंपरा के शीर्ष पुरुष श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के लिए घोषित कार सेवा आरंभ की थी। उस दिन वहां उपस्थित कुछ राजनेता अपनी संकीर्ण राजनीति के चलते यह कार्य करने नहीं देना चाहते थे व इस राजनीतिक रोटी को पकाना चाहते थे लेकिन जन आस्था की सुनामी ने यह संभव कर दिया तथा बाद में छद्म हिंदुत्व सत्ताधारियों के सत्ता पाकर बदले सेक्यूलर चेहरे देखकर उसे सत्ताच्युत भी किया।
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