"चीख लेने दो मुझे इस रात
फिर मर जाऊंगा
चरागों का धुंआ कुछ लिख गया
लाचार मौसम की सहम कर बह रही
बहकी सी हवाओं पर
बादल की रजाई ओढ़ ली है रात ने
सुबह सूरज छत से उतर कर आँगन में जब आ जाए
गेंदे जल उठेंगे
रातरानी बुझ रही होगी
तुलसी का पत्ता तोड़ कर तुम ओढ़ लेना धूप को
पलकों में दफ़न जब याद मेरी छलक जायेगी
तो वह रिश्ता बह उठेगा जो कभी ठहरा नहीं था तेरे जीवन में
जो मैं कह नहीं पाया कभी वह रिश्ता बह गया है तेरी आँखों से
नमी तस्दीक करती है
गमी तायीद करती है
मैं मर कर जी गया
तुम जी कर मर गये
सफ़र में साथ देता है कौन ?
बादलों की छाँव जैसे साथ में
हमसफ़र किसको कहूँ ?
चीख लेने दो मुझे इस रात
फिर मर जाऊंगा
चरागों का धुंआ कुछ लिख गया
लाचार मौसम की सहम कर बह रही
बहकी सी हवाओं पर ." ---- राजीव चतुर्वेदी
फिर मर जाऊंगा
चरागों का धुंआ कुछ लिख गया
लाचार मौसम की सहम कर बह रही
बहकी सी हवाओं पर
बादल की रजाई ओढ़ ली है रात ने
सुबह सूरज छत से उतर कर आँगन में जब आ जाए
गेंदे जल उठेंगे
रातरानी बुझ रही होगी
तुलसी का पत्ता तोड़ कर तुम ओढ़ लेना धूप को
पलकों में दफ़न जब याद मेरी छलक जायेगी
तो वह रिश्ता बह उठेगा जो कभी ठहरा नहीं था तेरे जीवन में
जो मैं कह नहीं पाया कभी वह रिश्ता बह गया है तेरी आँखों से
नमी तस्दीक करती है
गमी तायीद करती है
मैं मर कर जी गया
तुम जी कर मर गये
सफ़र में साथ देता है कौन ?
बादलों की छाँव जैसे साथ में
हमसफ़र किसको कहूँ ?
चीख लेने दो मुझे इस रात
फिर मर जाऊंगा
चरागों का धुंआ कुछ लिख गया
लाचार मौसम की सहम कर बह रही
बहकी सी हवाओं पर ." ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
कभी कभी रिश्तों की अहमियत बाद में पता चलता है
और तब शायद आँखों में आँसू के सिवा कुछ नहीं होता
सुन्दर भावमयी रचना
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