"हमारे तुम्हारे दरमियाँ एक दूरी थी
मकसद बड़ा था मगर कद छोटा था हमारा
उस दूरी को न नाप पाने की मजबूरी थी
हमें मिलने से रोक सकता था ज़माना
कुछ ख्वाहिशें थीं पर बीच में गुरूरों की खाई गहरी थी
पर घुल -घुल कर हम हवाओं में घुल चुके थे
प्यार की खुशबू हर खाई खलिश की लांघ जाती है
उस और से आती हवा मेरे आँचल पे ठहरी थी ." ----- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
:-)
बहुत सुन्दर लिखा है आपने !
मेरे लेटेस्ट पोस्ट @http://kpk-vichar.blogspot.in me aapka swagat hai.
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