"आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं -- " खुश तो हो ? "
सर्द हैं आहें, हवाएं खौफ से खामोश हैं
सहमे से मकानों की टूटी खिड़कियों से आती चांदनी चर्चा करेगी
हरारत की इबारत दर्ज हो जब सांस में तेरी
जरूरत का जनाजा सुबह सपने ओढ़ कर
उस चौखट को जब लांघेगा जहाँ दरवाजे अब गुमशुदा हैं
सहम के पूछती है रात -- "सफ़र लंबा है तेरा ?"
आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं खुश तो हो ?" ---- राजीव चतुर्वेदी
और मैं तुमसे ये पूछूं -- " खुश तो हो ? "
सर्द हैं आहें, हवाएं खौफ से खामोश हैं
सहमे से मकानों की टूटी खिड़कियों से आती चांदनी चर्चा करेगी
हरारत की इबारत दर्ज हो जब सांस में तेरी
जरूरत का जनाजा सुबह सपने ओढ़ कर
उस चौखट को जब लांघेगा जहाँ दरवाजे अब गुमशुदा हैं
सहम के पूछती है रात -- "सफ़र लंबा है तेरा ?"
आओ हम दुःख की रजाई ओढ़ कर सो जाएँ धीरे से
और मैं तुमसे ये पूछूं खुश तो हो ?" ---- राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment