Sunday, December 9, 2012

आओ पाखण्ड -पाखण्ड खेलें





"आओ पाखण्ड -पाखण्ड खेलें
 वामपंथी पाखंडों का भी मंतव्य एक है, गंतव्य अलग
दक्षिण पंथी पाखण्ड परिक्रमा में बहुत हैं पराक्रम में नहीं
सेक्यूलर कुछ -कुछ सूअर से मिलता हुआ शब्द है जो सर्व भोजन समभाव लेता है
सेक्यूलर वैचारिक खतना कराये हुए बुद्धिखोर होते हैं
सेक्यूलरों की सृष्टि सही पर दृष्टि कानी होती है
बेईमानी के सभी सिद्धांतों में इनकी मनमानी होती है  
सेक्यूलरों को जम्मू -कश्मीर में हिन्दुओं का पलायन नहीं दीखता
गोधरा की जलती ट्रेन में भूनते हुए हिन्दू तीर्थ यात्री नहीं दीखते
पर प्रति हिंसा प्रति पल दिखने का छल जारी है --यही इनकी गद्दारी है
एक सफल वैश्या व्यावसायिक कर्तव्य-निष्ठा से सेक्यूलर होती है  
हिन्दुओं के पाखण्ड अखंड हैं और प्रचण्ड भी
जिसने महान सभ्यता की पेंदी में छेड़ किया है
 ईसाईयों के पाखण्ड सेव खा कर पैदा हुए हैं
और ईसा  को हर साल सूली पर टांग कर जश्न मना रहे हैं
गैलीलियो की ह्त्या पर पछताने में उनको एक हजार साल से ज्यादा लग गए
यद्यपि ईसाई समय के पावंद होते हैं  
मुसलमानों के पाखण्ड इस शान्ति प्रेमी सभ्यता से मत पूछिए
जब यह हिंसा करें तो "हिंसा हलाल है"
पर जब कोई इनके ऊपर हिंसा करे तो मलाल है
यह इजराइल से गुजरात तक जब भी पिटते है तो शान्ति प्रेमी हो जाते है
वैसे गोधरा काण्ड करते में इनको
शान्ति की याद वैसे ही नहीं आयी जैसे अयसा के प्रति आज तक संवेदना
इस कौम में कर्बला का खलनायक सूफियान आज भी हर मोहल्ले में पाया जाता है
यह माना कि यह कर्बला से आज तक ग़मगीन हैं
पर आज भी इनके यहाँ यजीद और मोबीन हैं ." 
----- राजीव चतुर्वेदी    

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

राह चली है गर्त सभ्यता..

Deepika Dwivedi said...

यथार्थ चित्रण