" भारत में वैश्या वृत्ति भी है और प्रवृत्ति भी यहाँ दो प्रकार का देह व्यापार हो रहा है
एक तो दहेज़ के नाम पर देह व्यापार जिसमें पुरुष वेश्याएं अपनी देह बेच रही
हैं और दूसरे प्रकार का देह व्यापार कि जिसमें नारी देह सामान की तरह
खरीदने का अपमान है। पहले पुरुष वेश्याओं की बात हैं .----
दहेज़ निश्चय ही "देह व्यापार " है और दहेज़ ले कर शादी करनेवाले दूल्हे /
पति "पुरुष वैश्या". दहेज़ वैश्यावृत्ति है और दहेज़ की शादी से उत्पन्न
संताने वैश्या संतति. याद रहे वैश्या की संताने कभी क्रांति नहीं करती तबले
सारंगी ही बजाती हैं .लेकिन ताली दोनों हाथ से बज रही है. जब तक सपनो के
राजकुमार कार पर आएंगे पैदल या साइकिल पर नहीं तब तक दहेज़ विनिमय होगा ही .
जबतक लड़कीवाले लड़के के बाप के बंगले कार पर नज़र रखेंगे तब तक लड़केवाले
भी लड़कीवालों के धन पर नज़र डालेगे ही. इस तरह की वैश्यावृत्ति से आक्रान्त
समाज में अब लडकीयाँ अपने थके हुए माँ -बाप की गाढ़ी कमाई पुरुष देह को
अपने लिए खरीदने के लिए खर्च करने को मौन /मुखर स्वीकृति देती हैं ...यदि
स्वीकृति नहीं भी हो तो विरोध तो नहीं ही करती हैं। लडकीयाँ दहेज़ से लड़ना
ही नहीं चाह रहीं। सुविधा की चाह उन्हें संघर्ष की राह से बहुत दूर ले आई
है। देश में दूसरे तरह का देह व्यापार स्त्री देह व्यापार है। जिस देश में
साल में दो बार नौ -नौ दिन नौ देवी जैसे पर्व मनाये जाते हों ...अस्य
नार्यन्ती पूज्यन्ते जैसे जुमले गुनगुनाये जाते हों गार्गी, सीता, यशोदा,
अन्नपूर्णा, सरस्वती के संस्कारों की विराशत के देश में आज भी विश्व के
सबसे बड़े देह व्यापार के बाजार हैं वह भी वहां जहां दुर्गा पूजा की दीवानगी
है यानी कलकत्ता जी हाँ में कोलकाता के सोना गाछी और बहू बाज़ार नामक रेड
लाईट एरिया की बात कर रहा हूँ। विडंबना यह कि मानवाधिकार के लिए छाती पीटने
के आदी वामपंथी यहाँ तीस साल राज्य कर के गुजर गए और अब एक महिला ममता का
राज्य है। क्या आपको पता है कि विश्व की हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी
है। देश में सुबोध लडकीयाँ मुम्बई -दिल्ली जैसे शहरों में खुलेआम आपने
आपको विभिन्न बहानो और आवरणों में बेच रही हैं और अबोध गरीब लडकीयाँ
खुले-आम खरीदी-बेची जा रही हैं। कभी अरबी शेख से शादी के नाम पर कभी शादी
के नाम पर और अक्सर "गायब हो गयी" के नाम पर लडकीयाँ देह बाज़ार में भेजी जा
रही हैं। फिल्म "तलाश" में करीना का एक संवाद है----" वेश्यावृति अपराध है
साहब हमरे देश में, जो अपराध करता है वो खुद अपनी गिनती कैसे करवाए? और
जिसकी गिनती नहीं वो अपने गायब होने की रिपोर्ट कैसे कराये? हजारो लडकिया
ऐसे ही गायब हो जाती है साहब और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।" कुल मिला कर
भारत में सामाजिक संस्तुति से होता पुरुष वेश्याओं का देह व्यापार यानी
"दहेज़" और स्त्री वेश्याओं की बढ़ती संख्या इस राष्ट्र को कलंक की कगार पर
ले आये हैं। ऐसे में क्रान्ति की संभावना कोई नहीं क्योंकि याद रहे
--वैश्या संताने क्रांति नहीं करती,...नाच बलिये करते हैं तबले-सारंगी ही
बजाते हैं।"-- राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
बहुत ही रोचक विश्लेषण..
'पुरूष वैश्या' दहेज के लोभियों को अच्छी सज्ञा दी आपने.
सच मे दहेज पुरूष वैश्यावृति से ज्यादा और कुछ नही है.
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