Tuesday, December 18, 2012

पहले वातावरण में गूंजता था "ॐ " और अब गूंजता है " कंडोम "

"उस देश में बलात्कार पर हाय -तोबा मची हुयी है कि जहाँ हर छह महीने में नौ देवियों का पर्व मना कर हम बेटियों को पूजते हैं ...जिस देश से विश्व की सबसे अधिक बाल वैश्या आती हैं ...जहाँ दुर्गा पूजा सबसे बड़ा पर्व होता है उस पश्चिम बंगाल में लगभग तीस वर्ष वामपंथी शासन रहने के वाबजूद विश्व के सबसे बड़े वैश्यालय हैं ...क्यों ? इसीलिए कि हम अंतरात्मा से पाखंडी हैं ? ---हमारे अनेक धार्मिक प्रतीक बलात्कारी थे और हमने उन्हें भगवान् मान लिया ...हम  धड़ल्ले से द्रोपदी, कुन्ती या आयसा की वेदना कभी क्यों नहीं उकेर सके ? ----जब कभी किसी महिला के शोषक के बेनकाब होने का समय आया तो वह धर्म की आड़ लेकर बच निकला ....पहले के आदिम युद्धरत समाज में पुरुषो का दायित्व था क़ि वह अपने समाज की स्त्रीयों को सुरक्षा दें और स्त्रीयां समाज को सन्तति, सौन्दर्य और संस्कार देती थी ...धीरे -धीरे सभ्यता का विस्तार हुआ और युद्ध कम हो गए ...पुरुष हिंसा के प्रकट होने के पटल युद्ध जब कम हो गए तो पुरुष हिंसा की अभिव्यक्ति स्त्री को सुरक्षा देने के बजाय स्त्री शोषण में होने लगी ...फिर धीरे -धीरे पैसे लेकर देह बेचने वाली पुरुष वेश्याएं यानी दहेज़ ले कर शादी करने वाले दूल्हे दिखाई देने लगे ...पुरुष की जगह कापुरुष दिखने लगे ...यह प्रवृत्तीयाँ तो समाज में पहले से ही थीं इनकी पुनरावृत्तियो पर परिचर्चा होने लगी ...पर हर सामाजिक कुरूपता में सम्पूर्ण समाज जिम्मेदार होता है केवल पुरुष या केवल स्त्री  नहीं ....पुरुष अगर बलात्कारी हो तो निश्चय ही पुरुष दोषी है लेकिन स्त्री अगर वैश्या/ कॉल गर्ल /बार बाला है तब पुरुष क्यों और वह स्त्री क्यों नहीं दोषी है ?  ...देर से होते विवाह की सामाजिक स्थिति में वासना की भूख व्यक्त करने के अवसर की घात में रहती है ...ऐसे में मीडिया भी हर अवसर पर कामोद्दीपन कर देह व्यापार की ऐन्सेलरी इकाई या यों कहें अनुपूरक इकाई बन चुका है ...वात्सायन के काम सूत्र के तमाम समकालीन संस्करण से  लेकर इंडिया टुडे और आउट लुक तक सभी देह व्यापार से अपना बाज़ार तलाश रहे हैं ...सवा अरब की आबादी से आक्रान्त देश में सेक्स एजूकेशन की बात होती है और जब सेक्स एजूकेशन की बात होगी तो सेक्स लेबोरेट्री में प्रेक्टिकल भी होंगे जरूर ....आज बच्चा घर से जब भी बाहर निकलता है तो उसे दूध से भरी कढाई नहीं  दिखती ...दिखती है तो काम वासना की अभिव्यक्ति  करती कोई तश्वीर, कोई फ़िल्मी पोस्टर ...और घर पर टीवी में नच बलिये जैसी कोई हरकत या सनसनी जैसा कोई भुतहा चेहरा ...और लडकीयाँ भी कामोद्दीपन में बढ़ चढ़ कर शामिल हैं ....घर पर माँ भी अपनी फौरवर्ड होती बेटी से यह नहीं पूछती कि इन अंग प्रदर्शित और रेखांकित करते कपड़ों में कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए तुम कहाँ जा रही हो ? गाँव में भेस /गाय /कुतिया को जब कहा  था कि वह "गर्म" है तो इसका आशय यह होता था कि उसकी कामेक्षा है आज शहर में लडकीयों के लिए इसी "गर्म" को "हॉट" कहा जाता है तो लडकी के लिए कॉम्पलिमेंट माना जाता है . लड़कियों के नाम "रति" हैं तो रति की परिणिति होगी ही . महान दार्शनिक राखी सामंत कहती है कि ---"Rape is surprise sex."  Facebook पर एक अन्य विदुषी रीना जैन लिखती हैं -- "Virginity is lack of opportunity." ...दूसरी ओर गुजरी केंद्र सरकार का एक मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल यह बयान देता है कि -"बीबी जब पुरानी हो जाती है तब उसमें वह मजा नहीं रहता " ......इस प्रकार की घटनाओं में केवल अकेला पुरुष या अकेली स्त्री जिम्मेदार नहीं है बल्कि पूरा समाज सम्यकरूप से जिम्मेदार है ....दहेज़ ले कर शादी करते पुरुष वेश्याओं की निरंतर बढ़ती तादाद और स्त्री वेश्याओं की वश्व की सबसे बड़ी संख्या  बाला देश अब सीता,राधा,रुक्मणी ,गार्गी जीजा बाई ,लक्ष्मी बाई या गार्गी का देश नहीं यह देश "नच बलिये" का देश  है यहाँ अब शिवाजी,गोविन्द सिंह, तात्या टोपे,कान्होजी आंग्रे,टीपू सुलतान, भगत सिंह, सुभाष नायक नही होते यहाँ हैदर अली नायक नहीं होते यहाँ खली नायक होता है ...यहाँ सियाचिन पर मरने वाले सैनिक नायक नहीं होते हाई स्कूल फेल सचिन नायक होता है ...यहाँ शिवश्रोत्रम से अधिक गूंजता है "शीला की जवानी" ... ममता को नारी चरित्र की पराकाष्ठा मानने वाले देश में गली-गली "माँ न बनने का सामान बिक रहा है".... पहले वातावरण में गूंजता था "ॐ " और अब गूंजता है " कंडोम " ....निश्चय ही सामाजिक सुरक्षा का सामाजिक दायित्व निभाने में पुरुष असफल रहा है और संस्कारित करने के दायित्व में स्त्री असफल हो रही है ...सामाजिक मूल्यों की यह गिरानी इस असफलता की सनद है ...संसद से ले कर सड़क तक गाल बजाने से कुछ नहीं होगा कृपया अपनी अंतरात्मा बजाईये ." ------- राजीव चतुर्वेदी            

7 comments:

Ziaul Haq, Journalist said...

rajeev saaab bahut umdaa likha hai aapne aur hamse dekhkar raha nhi gaya hamne ise chori kar liya hai per credit aapko hi jayega, kyki likhaa aapne hi hia.. thx for sharing

chankya said...

https://fbcdn-sphotos-c-a.akamaihd.net/hphotos-ak-prn1/c0.0.343.343/p403x403/65118_537827226230265_896198890_n.jpg

प्रवीण पाण्डेय said...

आने वाली पीढियाँ हँसेंगी हम पर।

dralok27 said...

बहुत शानदार हकीकत बयान करता हुआ लेख राजीव जी !

ChandraBhushan Singh said...

निश्चय ही सामाजिक सुरक्षा का सामाजिक दायित्व निभाने में पुरुष असफल रहा है और संस्कारित करने के दायित्व में स्त्री असफल हो रही है very nice

Vinod bhartiye said...

Nirlazz samaj ke dhongi pehredaar

Anonymous said...

Bahut umda likhha hai aapne Sir. Pehle ke samaj ki Sanskrit aur aaj ke samaj ki samaj ki Sanskrit ka antar batakar ek sachch ko samne rakh diya aapne