"उसकी दैहिकता का संज्ञान कराते वस्त्रों में
वह सब कुछ था जो राग द्वेष में रोचक था
उसकी आत्मा का अक्षांश अक्ष की अटखेली में गायब था
देह जहां थी उसकी आत्मा उससे अलग खड़ी थी
पुरुषों की परिभाषा उसकी परिसीमा सी प्रश्न पूछती
परिधि नापती प्रतिरक्षा को परेशान थी प्रत्याशा में
और आह भारती थी आत्मा उसके आर्तनाद में
देह से ऊपर उठे लोग ही वैदेही की व्याख्या का व्याकरण लिखेंगे
आवरण और आचरण की कसौटी कष्ट तो देगी तुम्हें
आत्मा की आहटें दिल में तेरे जो गूंजती है
मैं तेरे पास आया था महज सुनने उन्हें
देह तेरी,... देह के रिश्ते सभी उन्हें क्या नाम दूं ?
देह से हट कर अगर मेरी आत्मा तुझे आत्मीय लगती हो
तो पुकारो मैं खडा हूँ दूर बेहद दूर ...
तेरी आत्मा के अंतिम किनारे पर." ---- राजीव चतुर्वेदी
वह सब कुछ था जो राग द्वेष में रोचक था
उसकी आत्मा का अक्षांश अक्ष की अटखेली में गायब था
देह जहां थी उसकी आत्मा उससे अलग खड़ी थी
पुरुषों की परिभाषा उसकी परिसीमा सी प्रश्न पूछती
परिधि नापती प्रतिरक्षा को परेशान थी प्रत्याशा में
और आह भारती थी आत्मा उसके आर्तनाद में
देह से ऊपर उठे लोग ही वैदेही की व्याख्या का व्याकरण लिखेंगे
आवरण और आचरण की कसौटी कष्ट तो देगी तुम्हें
आत्मा की आहटें दिल में तेरे जो गूंजती है
मैं तेरे पास आया था महज सुनने उन्हें
देह तेरी,... देह के रिश्ते सभी उन्हें क्या नाम दूं ?
देह से हट कर अगर मेरी आत्मा तुझे आत्मीय लगती हो
तो पुकारो मैं खडा हूँ दूर बेहद दूर ...
तेरी आत्मा के अंतिम किनारे पर." ---- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
न ये जानूँ,
देह प्यारी,
या मुझे भी,
आत्मा।
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