Sunday, October 14, 2012

एक कविता आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी

"एक कविता
जो पिघली थी मेरे दिल में
जो बहती थी मेरे मन में
आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी
मैं जानता हूँ इस कदर मेरा बिखरना ---तुम्हें अच्छा लगा है
रगड़ कर मेरा निखरना तुम्हें सच्चा लगा है
मेरा बिखरना देख कर तुम खुश हुए कविता समझ कर
इस आचरण के व्याकरण पर गौर कर लो
बियांबान दौर में जब सत्य भी सन्नाटे से सहमा था मैं चीखा था
मेरे बयानों में जो कांपती आवाज में दर्ज था, -- वह दर्द तेरा था

लोग उसको कविता समझ बैठे
एक कविता
जो पिघली थी मेरे दिल में
जो बहती थी मेरे मन में
आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी
मैं जानता हूँ इस कदर मेरा बिखरना ---तुम्हें
अच्छा लगा है." ----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कभी टूटता, तब दिखता है,
हृद में कितनी पीर भरी थी।