"मेरी आँखों में अक्श था उसका, आंसू तो थे नहीं गिरते तो गिरते कैसे ?
गिरा तहजीब से, बिखरा तरतीब से, --- मैंने उठाया फिर नहीं
अब जमीन पर जो नमीं सी चस्पा है वह उसकी ही अमानत है." ----राजीव चतुर्वेदी
गिरा तहजीब से, बिखरा तरतीब से, --- मैंने उठाया फिर नहीं
अब जमीन पर जो नमीं सी चस्पा है वह उसकी ही अमानत है." ----राजीव चतुर्वेदी
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