X
"कठिन है सत्य बोलना,
हनुमान जी की बातें करो
तो वेश्याओं के मोहल्ले में हाहाकार मच जाता है
कि यह व्यक्ति हमारी दूकान ही ठप्प कर देगा
वेश्याएं सेकुलर जो होती है,
कोलंबस की बात करो तो
गूलर के भुनगे भिनभिनाते हुए अपने ग्लोबलाईज़ेसन को बघारने लगे
हिन्दुओं की रूढ़ियाँ तोड़ोगे हिंदूवादीयो की आस्था को ठेस पहुंचेगी
इस्लाम का इहिलाम हुआ तो कठमुल्ले इमाम का फतवा कामतमाम कर सकता है
ईसाईयों ने तो ह़र साल ईसामसीह को
सूली सजा कर उसपर उन्हें बार बार टांगने में परहेज नहीं किया
पर ईसा को आज भी सूले से उतारने की रस्म नदारद है
गेलीलियो के घर का बहुत पहले ही बुझा दिया था दिया
इसलिए खामोश !! --ईसाईयों की बात मत करना
सच बोलने से उनकी आस्था को भी ठेस पहुँचती है
खामोश ! अदालत जारी है ---सुना है जज साहब ईमानदार हैं
इसलिए उनके पेशकार की पैरोकारी के उनके घर की तरकारी की चर्चा मत करना
न्याय की देवी की आँखे बंद हैं और कोंटेक्ट लेंस कारगर है कोई कोंटेक्ट ?
सुना है सभी कानूनी रूप से सामान हैं
पर चुप रहो, न्यायालय हो या संसद सभी के विशेषाधिकार हैं
कोंग्रेसीयों /भाजपाईयों /सपाईयों /बसपाईयों/आपियों /पापियों
चोरों /हरामजादों के बारे में भी सच कभी नहीं बोलना
आखिर उनकी भी आस्था है उनको भी ठेस पहुँचती है
कविता या साहित्य की बात भी यहाँ नहीं करना
क्योंकि हराम की दारू पी कर जो कवि रात को फुफकारता है
---"आसमान को शोलों से सुलगा दूंगा"
सुबह तक बीडी से आपकी रजाई सुलागा चुका होता है.
संपादकों/ पत्रकारों का समाचारों के अतिरिक्त जो बहिरउत्पाद है
वही तो उनकी समृद्धि का समाज शास्त्र है
वीर सिंघवी, बरखा दत्त, राजीव शुक्ला या दीपक चौरसिया जैसों की बात मत करना
क्योंकि सत्य से उनकी निष्ठा ने बहुत पहले ही अलविदा कह दिया था
दलाल शिरोमणि प्रभु चावला की बात भी मत करना
क्योंकि "सच के साथ उन्होंने गुजारे हैं चालीस साल"
जिससे सच तो गुजर गया और इनका गुजारा चल गया,
फेसबुक हो, ट्विटर,ऑरकुट
या कोई सोसल साईट चिरकुट --इन पर भी सच मत बोलना
यहाँ एक स्वयम्भू सम्पादकनुमा एडमिन होता है खेत के बिजूके जैसा
उसे कविता की न भाषा ही पता है और न परिभाषा
यहाँ सच न बोलना इससे किसी न किसी की आस्था को ठेस पहुँचती ही है
आओ साहित्य लिखें बेतुकी बातों को तुक में पिरोयें पर प्रेमिका की बात मत करना
इससे उस प्रेमिका के परिजनों की आस्था को ठेस पहुँचती है
आओ हम सब मिलकर सच की आस्था को ठेस पहुंचाएं
और कविता गुनगुनाएं." -----राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment