देह तो दहलीज है रूहों के सफ़र की यारो
"भीगती देह जज्वात सुलगते हों जहां,
प्यार निगाहों मैं तैरता आँखों में डूब जाता है.
देह पर प्यार से अब रूह का उनवान लिखो,
प्यार के वार से पत्थर भी टूट जाता है.
देह तो दहलीज है रूहों के सफ़र की यारो,
हमसफ़र किसको कहें ?-- कुछ दूर चले फिर साथ छूट जाता है."
---राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
behad khubsoort kavita,vaise to aap jo bhi likhte hai ,veh shresthtam ki suchi mai hai.
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