Sunday, June 24, 2012

इस बरसात में...



====बरसात--1====== 
"
इस बरसात में भावनाओं का भू स्खलन हो रहा है,
जिन्दगी के रास्तों पर जो मलवा गिरा है
उन्ही को लांघ कर मैंने सफ़र पूरा किया

जिन्दगी में खरासों की ख्वाहिश कौन करता है ?
तलासे थे जो मकसद मैंने खो दिए है

आँख के सपने कभी के रो दिए हैं
चरागों की रौशनी अब रौशनाई बन तारीकियों की तस्दीक करती है

माना मैं पत्थर था, तराशा तूने था
पर सच ये है कि मेरा जिस्म जिसने तोड़ा वह हथौड़ा तू ही था

अब रोक न मुझको मुझे जाना है बहुत दूर तुझसे
ख्वाहिसों में खामियां थीं ...इतनी तो न थीं कि खलिश खोजती घूमे खला में मुझको 

जिन्दगी में खरासों की ख्वाहिश कौन करता है ?
तलासे थे जो मकसद मैंने खो दिए है

आँख के सपने कभी के रो दिए हैं
चरागों की रौशनी अब रौशनाई बन तारीकियों की तस्दीक करती है 
इस बरसात में भावनाओं का भू स्खलन हो रहा है,
जिन्दगी के रास्तों पर जो मलवा गिरा है

उन्ही को लांघ कर मैंने सफ़र पूरा किया.
" -----राजीव चतुर्वेदी

====बरसात--2======

"उस रात समंदर पर बारिस हुई थी तेज़,
मैं गाँव का छप्पर था सुन कर सहम गया." ----राजीव चतुर्वेदी 
====बरसात--3====== 
"समंदर पर बरसते बादलों से पूछ लेते,
योजनाओं पर रोया है रेगिस्तान कितना ." ----राजीव चतुर्वेदी
====बरसात--4====== 
"आसमान से गिर रही हैं बूँदें
भीग रहे हैं लोग
गिरते चरित्र में भीगते हैं लोग
गिरते चरित्र को भोगते हैं लोग
फिर अपने भीगे चरित्र को पोंछते हैं लोग
जो गिरते हैं ऊंचाई से
नाली नदी और समंदर तक बहते है
जिन्हें पहले थी अपेक्षा उनकी ही उपेक्षा वह सहते हैं
जो कल वख्त की गर्मी नहीं झेल पाए
और भाप बन कर उड़ गए थे आसमानों तक
आज बूँद बन कर गिर रहे हैं
विचित्र है चरित्र का यह मानसून
आसमान से गिर रही हैं बूँदें
भीग रहे हैं लोग
गिरते चरित्र में भीगते हैं लोग
गिरते चरित्र को भोगते हैं लोग." ----- राजीव चतुर्वेदी
====बरसात--5====== 
"वह रुपहली याद बिजली की तरह कौंधी थी अभी,
मन में बादल से जो घुमड़े आँख में बरसात थी." ----राजीव चतुर्वेदी 
====बरसात--6====== 
"कल रात शब्द बरसात में भीगते ही रहे,
तुमने दरवाजा क्यों नहीं खोला ?"----राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बरसात पर शब्दों की सुन्दर फुहार..

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ....हर शब्द अपने आप में जीवंत ...

हर बरसात अपने अलग ही रूप में हैं यहाँ