"इस बरसात में भावनाओं का भू स्खलन हो रहा है,
जिन्दगी के रास्तों पर जो मलवा गिरा है
उन्ही को लांघ कर मैंने सफ़र पूरा किया
जिन्दगी में खरासों की ख्वाहिश कौन करता है ?
तलासे थे जो मकसद मैंने खो दिए है
आँख के सपने कभी के रो दिए हैं
चरागों की रौशनी अब रौशनाई बन तारीकियों की तस्दीक करती है
माना मैं पत्थर था, तराशा तूने था
पर सच ये है कि मेरा जिस्म जिसने तोड़ा वह हथौड़ा तू ही था
अब रोक न मुझको मुझे जाना है बहुत दूर तुझसे
ख्वाहिसों में खामियां थीं ...इतनी तो न थीं कि खलिश खोजती घूमे खला में मुझको
जिन्दगी में खरासों की ख्वाहिश कौन करता है ?
तलासे थे जो मकसद मैंने खो दिए है
आँख के सपने कभी के रो दिए हैं
चरागों की रौशनी अब रौशनाई बन तारीकियों की तस्दीक करती है
इस बरसात में भावनाओं का भू स्खलन हो रहा है,
जिन्दगी के रास्तों पर जो मलवा गिरा है
उन्ही को लांघ कर मैंने सफ़र पूरा किया." -----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
सब पर पैर रखा भी नहीं जा सकता है।
Post a Comment