"संकेतों से सहमी दुनिया, शब्दों को कैसे पढ़ पाती ?
आभाशों के अहसासों से परिभाषा कैसे गढ़ पाती ?
पत्नी को भी हार गया वह अधम जुआरी धर्मराज क्यों कहलाया ?
जो जीता वही सुयोधन था फिर दुर्योधन क्यों कहलाया ?
बहनों की ससुरालों में हस्तक्षेप करने वाला खलनायक होता है
फिर कृष्ण कहाँ से नायक था और शकुनी क्यों खलनायक है ?
कानी आँखों के दर्शन और लंगडी परिभाषाएं युगों को नाप नहीं पायी हैं
इस सच को सह पाओ तो सहमत हो जाना
वरना चमचे चाटुकारिता का च्यवनप्राश तो चाट रहे हैं
तुम भी चाटो,... दीर्घायु हो,... पर यह भी जानो
चमचे जय जयकार किया करते हैं
चमत्कार क्या कर पायेंगे ?"------राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
कार्य निम्नतर और चमत्कारों की आशा..
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