" मेरी बंजर भावनाओं के गलियारों में
जो गमले दो चार पड़े हैं --तुमने रख्खे हैं
इन गमलों में पानी तुम ही डाला करते बेहतर होता
गमलों के ये बौने पोधे पानी पीकर
पढ़ते होंगे उस बसंत की परिभाषा भी जिसको तितली तुमसे बेहतर जान रही है
गमलों में तुम फूल उगा कर भूल गए हो
गमलों और बंगलों में जो रहते हैं जड़ होते है
चेतन की चर्चा मत करना वेतन की मारामारी है
और घूसखोरी के अवसर बंगलेवालों को गमले पर बरसे मानसून जैसे लगते हैं
इनकी जड़ें जमीनों से रिश्ता भी कम रखती हैं
जड़ें नहीं जिनकी गहरी वह बहकेंगे
मिट्टी से रिश्ता रख्खेंगे वह महकेंगे
गमले के पौधे बंगले के बच्चे जल्दी खिलते, मरते भी जल्दी हैं
मेरी बंजर भावनाओं के गलियारों में
जो गमले दो चार पड़े हैं --तुमने रख्खे हैं
इन गमलों में पानी तुम ही डाला करते बेहतर होता
गमलों के ये बौने पौधे पानी पीकर
पढ़ते होंगे इस बसंत की परिभाषा भी जिसको तितली तुमसे बेहतर जान रही है ."------ राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
संबंधों का ध्यान रखना पड़ता है, सतत।
टूटे रिश्तों की कसक के साथ, अपनी जमीन से कट जाने वाली पौध के लिए अपनी जमीन से जुड़े रहने की आवश्यकता और उपादेयता बताती, भावपूर्ण, सशक्त अभिव्यक्ति
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