Saturday, June 2, 2012

शब्द सहमे थे बोलते तो बोलते कैसे ?

"मैं चुप हूँ
तुम भी बोलते क्यों नहीं ?
आओ इस सन्नाटे को जख्मी करें." ----राजीव चतुर्वेदी
"चीख कर चुप हो गया उनवान कविता का,
शब्द सहमे थे बोलते तो बोलते कैसे ?" ----राजीव चतुर्वेदी
"चराग की ही आग से छप्पर जला था गाँव का,
रो रही वह बस्तियां अब रोशनी से डरती हैं." ----राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाटा दौड़ा आता है, कुछ बोलो और रोको उसे..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. तीनो जबरदस्त ... बहुत ही प्रभावी ..