"आम आदमी को "आम" की तरह ख़ास आदमी चूसता रहा है
...मुग़ल कालीन जुमला है "कत्ले आम" यानी यहाँ भी आम आदमी का ही क़त्ल होता
था ...अंग्रेजों के समय भी आम आदमी ही गुलाम था ...नेहरू से मनमोहन तक भी
आम आदमी की खैर नहीं रही ...रोबर्ट्स बढेरा को भी बनाना रिपब्लिक घोटाले की
डकार लेते हुए मेंगो रिपब्लिक लगने लगा कार्टून की दुनिया में आर के
लक्ष्मण के "आम आदमी" की हैसियत काक के कार्टूनों में भी नहीं बदली ...आम
आदमी पर वामपंथी कविता सुनते ख़ास आदमी ने
भी द्वंदात्मक भौतिकवाद दनादन बघारा ...आम आदमी की चिंता में संसद के ख़ास
आदमी अक्सर खाँसते हैं ...अब केजरीवाल को भी आम आदमी को आम की तरह चूसना है
...अरे भाई आम आदमी वह है जिसे केरोसीन के तेल का मोल पता हो ...राशन की
दूकान की कतार में कातर सा खडा हो ...आलू की कीमत से जो आहात होता हो ...जो
बच्चों के साथ खिलोनो की दूकान से कतरा कर निकलता हो ...जो बच्चों को
समझाता हो कार बालों को डाईबिटीज़ हो जाती है क्योंकि वह पैदल नहीं चलते
...आम आदमी अंगरेजी नहीं बोलता ...आम आदमी के बच्चे मुनिस्पिल स्कूल में
पढ़ते है। वहां टाट -पट्टी पर बैठ कर इमला लिखते हैं ...वह जब कभी रोडवेज़ बस
से चलता है ...उसका इनकम टेक्स से उसका कोई वास्ता नहीं होता किन्तु वह
इनकम टेक्स अधिकारी से भी उतना ही डरता है जितना और सभी घूसखोर अधिकारियों
से डरता है क्योंकि घूस देने पर उसके सपनो का एक कोना तो टूट ही जाता है
...आम आदमी देश की मिट्टी से जुडा होता है वह खेत की मिट्टी देख कर बता
देता है कि यह बलुअर है या दोमट ...आम आदमी मिट्टी देख कर बता देता है इस
मिट्टी में कौन सी फसल होगी बिलकुल वैसे ही जैसे कोई केजरीवाल बताता हो इस
मिट्टी में कौन सा वोट उगेगा ?" --- राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
फसल लहलहाती है, खाद पूरी है
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