"यहाँ हो रहा ईलू- ईलू काव्य विमोचन
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें
प्रेम की कविता कहने वालो
सवा अरब की आबादी में देह से पहले देश को देखो
गल्ला सड़ता है गोदाम में भूख है पसरी हर मकान में
सेना के जवान को देखो
सियाचिन की शीतलहर के सीमित संसाधन में कम वेतन में जूझ रहा है
और यहाँ नौकरशाही को घूस का अवसर सूझ रहा है
शिक्षा की दूकान पर बिकता एकलव्य का रोज अंगूठा तुम भी देखो
सुविधा का विस्तार कर रही संसद देखो
राष्ट्रपति बनने की राहों से पूछो लोकतंत्र की आहों का सच
न्याय बकीलों की दूकान पर बिकता है क्या ?
जन -गण -मन की धुन को गाता घुन सा देखो जो नेता है, राष्ट्रधर्म का अभिनेता है
यहाँ हो रहा ईलू- ईलू काव्य विमोचन
चलो चलें हम संघर्षों के सेहरा बांधें
और जनपथों की चीखों से राजपथों की नींद उड़ा दें." -----राजीव चतुर्वेदी
5 comments:
राजीव भाई
बहुत बहुत साधुवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (07-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सच्चाई को बयाँ करती बहुत ही खुबसूरत रचना ...
jantantra mein janata hi sarvopari honi chahiye
satik abhiwayakti....
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