Friday, July 6, 2012

चाँद के इस पार चरागों का शहर है



"कश्तियों की बात करना किश्त में
मेरी आँखों में पूरा समन्दर डूब जाता है
तेरी याद ही कुछ ऐसी है
रेत हो जैसे पहाड़ों के टूटते विश्वास की
मैं किनारा हूँ तुम्हारे केंद्र का
रातरानी की महक को क्या पता तुम नहीं हो अब यहाँ
शांत सा दालान अब ये सोचता है
चाँद के इस पार चरागों का शहर है
कल सुबह का सूरज भी समंदर से नहाकर निकलेगा तेरी हर याद सा
हर सुबह की चाय के ही साथ में हाथ में अखबार होता है मेरे
अखबार में दुनियाँ तो होती दर्ज है ...पर तू नहीं है
कश्तियों की बात करना किश्त में
मेरी आँखों में पूरा समन्दर डूब जाता है
तेरी याद ही कुछ ऐसी है
चाँद -तारे, थोड़ा सूरज, शेष धरती, शब्द सारे
रातरानी की महक में मिला दो तो तेरा अहसास बनता है
शांत सा दालान अब ये सोचता है
चाँद के इस पार चरागों का शहर है." ----राजीव चतुर्वेदी 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति..