Sunday, July 15, 2012

तेरा वह आंसू भी शामिल है इसी बरसात में


"तेरी आँखों से गाल पर बहते हुए जहां आंसू गिरे थे

उन रास्तों पर चल के मैं भी गिर गया हूँ अब जमीं पर
सोचता हूँ अब उठूँगा जब कभी मैं
भाप बन कर तापमानों के तिरष्कृत तर्क के कारण
असमान कारण से आसमानों की तरफ बादल बनूंगा मैं
इस तरह बरसात में हिस्सेदारी तेरी उस वेदना की हो सकेगी
तेरा वह आंसू भी शामिल है इसी बरसात में
तेरे बालों से झरता हूँ ...तेरी आँखों को धोता हूँ ...तेरे गालों से बहता हूँ
मैं आंसू हूँ गिर गया था... फिर उठा हूँ...स्वाभिमानो के तापमानो से आसमानों तक."
----राजीव चतुर्वेदी 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

Rajesh Kumari said...

बहुत शानदार प्रस्तुति अनुपमभाव बहुत सुन्दर

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर है आँसू है !

प्रवीण पाण्डेय said...

आँसुओं को किसी का कन्धा अवश्य मिले।