Saturday, July 21, 2012

भाषा भ्रष्टाचार से लड़ने का पहला और अंतिम हथियार होती है

"भाषा भ्रष्टाचार से लड़ने का पहला और अंतिम हथियार होती है. जिस देश समाज की भाषा ही चरित्रहीन और भ्रष्ट हो जाए वह देश या समाज भ्रष्टाचार से क्या लड़ेगा ? मिशाल देखिये --राजा ने मंत्री से कहा "छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाए तो क्या हुआ ?" चाटुकार मंत्री ने चतुर उत्तर दिया "मत्स्य न्याय". अगर यह भी न्याय है तो अन्याय किसे कहते हैं ? जमींदार के यहाँ पांच हजारे ले कर नाचे वह साली रंडी लेकिन दाउद अब्राहम या उनके जैसे ही लोगों के यहाँ दोबई में पचास लाख लेकर जो नाचे वह भारत की सांस्कृतिक राजदूत ऐश्वर्य राय. आगे देखिये ---अंजू महेन्द्रू , टीना मुनीम (अम्बानी) और अब कोई अडवानी सहित सैकड़ों से इश्क फरमाने वाले राजेश खन्ना "रोमांस के राजा" और कोई गरीब यही करता तो "साला छिनरा". सेना का जवान सीमा पर साहस जांबाजी दिखाए तो "बोल्ड". कोई लड़की किसी लफंगे का प्रतिकार करे या चैन स्नेचर को पकड़ ले तो "बोल्ड " . कोई गुंडे का विरोध करे तो "बोल्ड " समझ में आता है पर जब बंबई की कोई वैश्यानुमा एक्टर नंगई पर आमादा हो तो उसे भी "बोल्ड" कह कर समाज की श्रेष्ठ साहसी महिलाओं के चरित्र को ही बोल्ड कर डाला. हिन्दी शब्दकोश में इंग्लिश के "Honesty" तथा "Punctuality" के अर्थ का कोई शब्द नहीं है ---क्यों ? क्योंकि इसकी अवधारणा ही हिन्दी भाषी समाज में नहीं थी यदपि उर्दू में दो शब्दों को मिला कर "ईमानदारी" जैसे शब्द बना लिए गए पर हिन्दी भाषी समाज ने कोई आवश्यकता ही नहीं समझी.बड़े लोग जब चाहे धर्म विरुद्ध आचरण करें और उसे "आपाद धर्म" कह दें. क्या नैतिक मूल्य और सिद्धांत केवल गरीबों और माध्यम वर्गीय लोगों के लिए ही हैं ? सबसे शातिर लोगों के हाथों में सबसे बड़े शब्दकोष हैं . और भाषाई भ्रष्टाचार के लिए कितनी तरह की बोली बोलते हैं हम --- मुहं की आबाज़, गले की आवाज़, आत्मा की आवाज़ , अंतरात्मा की आवाज़ , भावना की आवाज़, परमात्मा की आवाज़ , दिल की आवाज़ , दिमाग की आवाज़...अरे भाई शरीर के अन्य अंग हवा निकालते में भी आवाज़ करते हैं. यह भाषा और इसकी परिभाषा सड़ रही है इससे बदबू आने लगी है. इसके पहले कि हमारे शब्द सत्य की शव यात्रा में शामिल हों ---सावधान !! ---याद रहे भाषा भ्रष्टाचार से लड़ने का पहला और अंतिम हथियार है." ----राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

luvpandey said...

भाषा पांच तन्मात्राओं में से एक है और मन के संकल्प और विकल्प का पांच ज्ञानेन्द्रियों पर प्रभाव स्वरुप उत्पन्न होता है अतः भ्रस्टाचार में सहायक भी हो सकता है और उसे ख़तम भी कर सकता है, क्यूंकि उत्पाद का उत्पादक पर भी प्रभाव होता है अतः मन के समस्त संकल्प और विकल्प भाषा से प्रभावित होते हैं , यहाँ मुझे न्यूटन का तीसरा सिद्धांत याद आता है I मन की साधना को इसीलिए आध्यात्म में जीवन के समस्त कार्यों में से सबसे महत्वपूर्ण कहा गया है क्यूँ की प्राण उर्जा इसी माध्यम से शरीर की यात्रा को निश्चित करती है I निष्कपटता और समयबद्धता भी हमारे भाषा में प्राचीन काल से वर्णित है I वस्तुतः समस्त ज्ञान इस धरा में तुच्छ हैं यदि आध्यात्म का ज्ञान और साधना न हो , भक्ति मार्ग भी सिर्फ इस साधना के न होने पर तात्कालिक व्यथा से मुक्त कर सकती है किन्तु जीवन रूपी यज्ञ का फल कभी नहीं दे सकती , हाँ पुनः अवसर दिला सकती है I योग का भी जिस प्रकार से शारीरिक वर्णन किया जा रहा है समाज में, वह वस्तुतः योग का पूर्ण रूप या व्याख्या नहीं है , शारीरिक क्रियाओ से मन पर प्रभाव होता तो है किन्तु वह अपने शाश्वत को कभी नहीं प् सकती , जब तक की योगी ये न समझ जाये की साधक ही साधन है और साधन ही साधक है जब इन दोनों अवस्थाओ को को योगी सिद्ध कर लेता है तब वह अपने पूर्ण शाश्वत सत्य को पाकर समस्त विकृतियों से मुक्त हो कैवल्य को प्राप्त करता है I

प्रवीण पाण्डेय said...

मन का प्रभाव भाषा पर पड़ता है, जितने गन्दे मन होते हैं, उतनी ही गन्दी भाषा हो जाती है..

Anonymous said...

"भाषा केवल हमारी प्रत्येक चाहत को पूरा करने और समस्याओं को दूर करने का पहला और अंतिम हथियार होती है. जिस देश के प्रमुख व्यक्ति ही चरित्रहीन और भ्रष्ट हो जाए वह देश या समाज भ्रष्टाचार से क्या लड़ेगा? लोग जिनसे उम्मीद करते है वे ही नँगाई और छिनारे को महिमामंडित करते हों, दुर्व्यवस्थाओं को सामाजिक न्याय, राजनीति या "आपाद धर्म" कहकर यथार्थ को हल्का कर देते हों, नैतिक मूल्यों, ईमानदारी, धर्म और सिद्धांतों के नाम पर अनर्गल प्रपंच में व्यस्त हों, और अंत में शब्दों के पोस्ट मॉर्टम जिनसे ना तो किसी का भला हो रहा है और ना ही बुरा दूर हो रहा, यह तो सभी लोग अपना-२ समझते है| मुहं की आवाज़, गले की आवाज़, आत्मा की आवाज़, अंतरात्मा की आवाज़, भावना की आवाज़, परमात्मा की आवाज़, दिल की आवाज़, दिमाग की आवाज़ आदि सभी से ज़्यादा प्रभावी है शरीर अंगों से निकली आवाज़ जिन्हे हम अपनी ज़रूरतों या समस्याओं के नाम से पहचानते हैं, जिसके बिना सभी भाषा और सबकी परिभाषा सड़ी हुई वस्तु है जिनसे बदबू आती है| इसके पहले कि हमारे शब्द अपने, सभी के तथा एक मात्र अंतिम सत्य की शव यात्रा में शामिल हों ---सावधान !! याद रहे भाषा केवल प्रत्येक चाहत को पूरा करने और समस्याओं को दूर करने के तरीकों का पहला और अंतिम हथियार है| भाषा के उक्त के अतिरिक्त अन्य उपयोग हमें अपने हित पूरे करने या अहित दूर करने अर्थात मंगल भवन अमंगल हारी अर्थात अपने हित या सबके हित या पूर्ण, वास्तविक, कल्याणकारी, आनंददाई, सर्वव्यापी श्रीराम से दूर ले जाती है|