Saturday, August 4, 2012

मैं वह बरगद हूँ ...

"मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर खड़ा हुआ था वर्षों से

मैं वह बरगद हूँ
जो इसी राज मार्ग पर पड़ा हुआ हूँ अब मेरी छाया को तरसोगे

वह रस्ते जो मेरी छाया में सुस्ताते थे,... खामोश खड़े हैं
हम तो गुजरी पीढी के हैं गुजर गए
इन रास्तों से तो शताब्दियाँ भी गुजरी हैं
खेतों की मेड़ें टूट रहीं अब प्लॉटों की पैमाइश से
इच्छाएं आकार ले रहीं जेबों की गुंजाइश से
हम तो गुजरी पीढी से हैं गुजर गए
गुलशन की अब बात गुनाहों सी लगती है ...गुलदस्ते सस्ते होते हैं
यह सड़कें अब विस्तार ले रही और सभ्यता फ़ैल रही है
दूर तलक देखो तो देखो
सड़क किनारे लगी टाल पर मेरी लकड़ी तौल रही है

वह जो चिड़िया चहक रही थी मेरी डाल पर अब गवाह है
ह्त्या मेरी हुयी यहाँ है
चिड़िया की चिंता पर चर्चा कौन करेगा ?
एक मौन अब भी तारी है
कटते पेड़ कभी तुम देखो ...संकेतों से समझो तुम भी
यहाँ तुम्हारी भी बारी है." ----राजीव चतुर्वेदी

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अभी कुछ दिन पहले सड़क चौड़ी करने के लिये २० वृक्षों को कटते देखा, मन क्षुब्ध हो गया।

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक ... करुण गाथा ...

परमजीत सिहँ बाली said...

सुंदर व विचारणीय रचना !
शुभकामनाएँ !