Saturday, August 11, 2012

इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ?



"ये कहाँ आ गए हम ? 15 अगस्त'1947 से 15 अगस्त'2012 तक की यात्रा पर गौर करें. राष्ट्र एक भावनात्मक अवधारणा है जिसे जब हम अमल में लाते हैं तो उसका भौतिक स्वरुप विकसित होता है. 1947 में भी देश में हिन्दू नागरिक शरणार्थी शिविरों में थे और 2012 में भी. तब भी पाकिस्तान ने इस्लाम का झंडा हाथ में लेकर हमला किया था इधर राजस्थान ,पंजाब, जम्मू -कश्मीर पर पाकिस्तान का हमला था उधर असम-पश्चिम बंगाल पर पूर्वी पाकिस्तान (अब बँगला देश का ) हमला था. आज भी जम्मू कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडितों की सुध लेने वाला कोई नहीं क्योंकि जब वह वहां रहते ही नहीं हैं तो उनका वोट बैंक भी नहीं है. चूंकि मामला पाकिस्तान का कम इस्लाम का ज्यादा है इसलिए एक -एक कर हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है. जो कश्मीर में प्रयोग सफल रहा वही प्रयोग असम में दोहराया जा रहा है. देश में इस्लामिक आतंकवाद से तब भी भगदड़ थी देश में अब भी इस्लामिक आतंकवाद के कारण भगदड़ है. अगर जम्मू -कश्मीर के विस्थापितों के पुनर्वास की कोई स्पष्ट योजना नहीं. अगर असम के हिन्दुओं को सुरक्षा देने की कोई स्पष्ट नीति नहीं तो इस 15 अगस्त के माने ही क्या है ?"
"लालकिले के प्राचीरों पर जा लटके चमगादड़ सारे,
और तिरंगा रोया कितना जन -गण -मन के राग पर." ----- राजीव चतुर्वेदी



2 comments:

Rajesh Kumari said...

सही कहा आपने कैसी आजादी पहले अंग्रेजों के गुलाम थे आज भ्रष्टाचारियों और आतंकवाद के गुलाम कहाँ है आजादी

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ नहीं बदला है, घातें अब भी चल रही हैं..