"15 अगस्त'1947 से 15 अगस्त 2014 के बीच के सफ़र में हम कहाँ हैं ? भारत
बनाम इंडिया की खाई और गहरी हुई है इस कृषि प्रधान देश को चलाता है 70 %
ग्रामीण भारत और उस पर ऐश करता है 30% शहरी भारत. सरदार मनमोहन सिंह के
कार्यकाल में जो भारत की अर्थ व्यवस्था की अर्थी ही निकल गयी है. अब बजट
में सुविधाओं का बटवारा भी अमीर और गरीब के लिए अलग अलग है अब अमीरों को
Consumer Index यानी "उपभोक्ता सूचकांक" के आधार पर सुविधाएं दी जा रही हैं
और गरीबों को Gross Domestic Product यानी कि "सकल घरेलू उत्पाद" के हिसाब
से. बात साफ़ है कि अमीर को उसकी उपभोग करने की क्षमता के हिसाब से सरकार
सुविधा देगी और गरीब को सुविधाएं दिए जाने से पहले यह पूछा जाएगा कि तुमने
क्या उत्पादन किया है या तुम्हारी कमाई कितनी है ? ... या तुम्हारी तो औकात
क्या है ? परिणाम सामने है दवा मंहगी और दारू सस्ती हो रही है. रोडवेज बस
का किराया बढ़ रहा है, हवाई जहाज का किराया घट रहा है. खेतों में अन्न उगाना
अलाभकारी धंधा है खेतों की प्लोटिंग करना बहुत लाभकारी है. देश में सभी
वस्तुओ के दाम आसमान पर पहुँच गए बस कृषि उत्पादन के दाम नहीं बढ़ रहे क्यों
? फसल जब तक किसान के यहाँ रहती है सस्ती होती है और जैसे ही आढतियों के
यहाँ पहुँच जाती है मंहगी हो जाती है.
देश की सीमा की रक्षा करता है गाँव का बेटा....देश और प्रदेश की सरकारें बनती हैं गाँव के वोट से...देश का पेट भरता है गाँव के कृषि उत्पाद से...शहर के लोग गाँव के लोगों से अधिक प्रति व्यक्ति दूध/ दही /घी /सब्जी का उपभोग करते है. शहर के मिल का मालिक होता है शहर का आदमी और मजदूर होता है गाँव का आदमी. शहर में साहब होता है शहर का आदमी यानी "इंडिया" और नौकर होता है गाँव का आदमी यानी "भारत". आज भी शहर के अभिजात्य पब्लिक स्कूलों और गाँव के टाट पट्टी वाले स्कूलों के बीच सामान शिक्षा का नारा मुह बाए खड़ा है. अर्जुन और एकलव्यों के स्कूल आज भी अलग-अलग हैं. पब्लिक स्कूलों के पढ़े लोगों के लिए गाँव से गुलाम ढालने के लिए गाँव के स्कूल चलाये जा रहे हैं.----यह षड्यंत्र है लोकतंत्र नहीं."------राजीव चतुर्वेदी
देश की सीमा की रक्षा करता है गाँव का बेटा....देश और प्रदेश की सरकारें बनती हैं गाँव के वोट से...देश का पेट भरता है गाँव के कृषि उत्पाद से...शहर के लोग गाँव के लोगों से अधिक प्रति व्यक्ति दूध/ दही /घी /सब्जी का उपभोग करते है. शहर के मिल का मालिक होता है शहर का आदमी और मजदूर होता है गाँव का आदमी. शहर में साहब होता है शहर का आदमी यानी "इंडिया" और नौकर होता है गाँव का आदमी यानी "भारत". आज भी शहर के अभिजात्य पब्लिक स्कूलों और गाँव के टाट पट्टी वाले स्कूलों के बीच सामान शिक्षा का नारा मुह बाए खड़ा है. अर्जुन और एकलव्यों के स्कूल आज भी अलग-अलग हैं. पब्लिक स्कूलों के पढ़े लोगों के लिए गाँव से गुलाम ढालने के लिए गाँव के स्कूल चलाये जा रहे हैं.----यह षड्यंत्र है लोकतंत्र नहीं."------राजीव चतुर्वेदी
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