Friday, August 24, 2012

गैलीलियो और गुलेलों के बीच



"गैलीलियो और गुलेलों के बीच सभ्यता के शिलान्यासों को भी देख,
आसमानों और धरती के बीच असमान से अहसासों को भी देख
एक सूरज सहम कर शाम को बिजली के खम्बे में लटक कर आत्महत्या कर चुका है
दूसरी सभ्यता ऐसी है कि उसकी रात ही गुलजार होती है
एक अभागन माँ,   बेटी की विवशता जानती है और रो-रो के सोती है
जानती है सुबह तक बेटी लौटेगी अपनी देह के अनुपात में कुछ दाम लेकर चेहरा दामन से लपेटे
चांदनी के चरित्रों का चर्चा सुन के सूरज सिहर जाएगा
एक सूरज सहम कर शाम को बिजली के खम्बे में लटक कर आत्महत्या कर चुका होगा आसमानों और धरती के बीच असमान से अहसासों को भी देख  
गैलीलियो और गुलेलों के बीच सभ्यता के शिलान्यासों को भी देख."  ----- राजीव चतुर्वेदी 



1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

दो सदियों के बीच भावों के कितने ज्वार निर्मित हो चुके हैं, उनका स्थायी प्रभाव सभ्यताओं में दिखता है।